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निम्न दर्जे पर पहुंचती उच्च शिक्षा - फिरोज वरुण गांधी

उन्नीसवीं सदी के लगभग मध्य में स्थापित कलकत्ता विश्वविद्यालय और उसके उत्तरार्ध के इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को नोबेल विजेता और प्रधानमंत्री दिया है। मगर अब इनकी गिनती विश्व रैंकिंग में पहले 400 विश्वविद्यालयों में भी नहीं होती। यहां तक कि ब्रिक्स देशों के शीर्ष 20 विश्वविद्यालयों में हमारी एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है। दरअसल, हमारे विश्वविद्यालय ‘उच्च शिक्षा के नगरपालिका स्कूल' में तब्दील हो गए हैं। दूसरी तरफ, अधिकतर...

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बिजली का हाल कदम तो उठे, अब रोशनी का इंतजार- सुहेल हामिद

देश में बिजली और मांग के बीच का अंतर 3.6 फीसदी देखने में भले ही कम लगता हो, लेकिन इसे पूरा करने की राह इतनी आसान भी नहीं है। यह अंतर तब है, जब इस साल बिजली उत्पादन 8.4 फीसदी बढ़ा है। देश के कई हिस्सों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति आज भी एक सपना है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एनडीए सरकार ने...

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भूकंप के खतरे पर अब तो संभल जाएं - डॉ. पृथ्‍वीश नाग

अनवरत चलने वाली प्राकृतिक सामंजस्य की एक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न् भयावह और विनाशकारी भूकंप पर पूर्ण नियंत्रण असंभव है। बचाव के उपाय ही हमारे पास एकमात्र विकल्प हैं। पिछली सदी के दौरान भारत तथा आसपास के देशों से जुड़े क्षेत्रों में 5.0 गहनता के भूकंपों की एक पूरी श्र्ाृंखला बताती है कि भारत, नेपाल और यह पूरा इलाका भूकंपीय क्षेत्र है। नेपाल में आए बड़े भूकंप के जबर्दस्त कंपन...

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किसानों को चाहिए सुरक्षा कवच- बी के चतुर्वेदी

विकट कृषि संकट के चलते किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में हमें इस समस्या पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। किसानों के लिए किसी भी तरह के सुरक्षा तंत्र की रूपरेखा उनकी जरूरतों और समस्याओं की समझ पर आधारित होनी चाहिए। ऐसे किसी तंत्र के लिए विभिन्न पहलुओं पर गौर करना जरूरी है। इसमें से पहला यह कि छोटी जोत की खेती के लिए बड़े पैमाने पर...

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कानूनों के जंजाल से घिरी नौकरशाही - जोगिंदर सिंह

मैं हमेशा अचरज में पड़ जाता हूं कि आखिर जिन लोगों के हाथ में सत्ता और अधिकार हैं, वे सिरे से गलत चीजों को दुरुस्त करने के लिए क्यों कुछ नहीं करते? मैं जब स्टूडेंट हुआ करता था, तभी से मैं गुड गवर्नेंस वगैरह के बारे में सुनता आ रहा हूं, लेकिन अफसोस कि तब से लेकर अब तक ज्यादा कुछ नहीं बदला है। दुनिया बदल गई, हालात बदल गए,...

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