भारत कृषि प्रधान देश है। आज भी देश के किसानों का एक बड़ा वर्ग अपनी फसलों के लिए बादलों की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखता है। मानसून का अच्छा या बुरा होना, हमारी फसलों की पैदावार के अच्छे या बुरे होने को तय करता है। लेकिन बदली जीवन शैली में जिन लोगों का कृषि संबंधी गतिविधियों से सीधा सरोकार नहीं है, मानसून उनसे भी अपने यथोचित स्वागत की अपेक्षा...
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बीड: गिरवी रखी जमीन को छोड़ने के बदले साहूकार ने किसान से मांगा-उसकी बेटी और बहू का 'साथ'
मुंबई: महाराष्ट्र में बीड जिले के एक किसान ने आरोप लगाया है कि उसकी गिरवी रखी जमीन को छोड़ने के बदले साहूकार ने उससे उसकी बेटी और बहू का 'साथ' मांगा । पुलिस का कहना है कि वह किसान के आरोपों की जांच करेगी। बीड के एसपी अनिल पारस्कर ने कहा, ''किसान के दावों पर हमने कार्रवाई शुरू कर दी है और साहूकार के खिलाफ उचित कदम उठाया जाएगा।'' आइपीएस अधिकारी...
More »सब्सिडी : कल्याण या राजनीति? मुफ्तखोरी के दुष्चक्र में फंसता देश
ज्यादातर देशों में एक ओर जहां राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए मुफ्तखोरी को हथियार बनाती हैं, वहीं इसी दुनिया में स्विटजरलैंड जैसा भी एक देश है, जहां की जनता ने सरकार की इस पेशकश को ठुकरा दिया. दूसरी तरफ भारत में देखें तो राजनीतिक पार्टियां और सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देनेवाली नीतियों को प्रश्रय देती रहती हैं भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सब्सिडी एक जरूरी...
More »सरकार और जनता के बीच दूरी-- पी चिदंबरम
ब्रिटेन की जनता ने यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला किया है। यह कहना ज्यादा सही है कि एक बंटे हुए देश के बंटे हुए मतदाताओं ने, चार फीसद से भी कम के बहुमत से, उस संघ से अलग होने के पक्ष में वोट दिया, जिसमें वे तैंतालीस साल पहले शामिल हुए थे। स्काटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और लंदन विभाजन-रेखा के एक तरफ थे, जबकि इंग्लैंड तथा वेल्स दूसरी तरफ।...
More »माल देशी, मालिकाना विदेशी --- अनिल रघुराज
इकलौते तथ्य से सत्य नहीं निकल सकता. लेकिन अनेक तथ्यों को साथ मिला कर सत्य की समग्र तसवीर बनायी जा सकती है. मसला है देश के व्यापक आर्थिक विकास और रोजगार सृजन का. यह मसला केंद्र या राज्य सरकारों के लिए ही नहीं, देश के हर अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष या बच्चे, बूढ़े व नौजवान के लिए बेहद अहम है. आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के इस मसले को सुलझाने के चार...
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