‘जो कुछ भी गोपनीय रखा जाता है, पूरी तरह बताया और समझाया नहीं जाता, अनेक प्रश्न अनुत्तरित रखकर किया जाता है; वह बाद में सड़ने लगता है। चाहे इस तरह किया गया न्याय ही क्यों न हो। - पुरानी कहावत मृत्युदंड दिया जाना चाहिए कि नहीं? प्रभावी और मेधावी लब्धप्रतिष्ठितों की स्पष्ट राय है - नहीं? उनके चार तर्क हैं : 1. क्योंकि यह तो ‘आंख के बदले अांख' का विकृत कानून हो...
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करोड़ों अकेले-बेबस लोगों का देश - पुण्य प्रसून वाजपेयी
देश में 50 करोड़ से ज्यादा वोटर किसी राजनीति दल के सदस्य नहीं हैं. ये वोटर अपनी-अपनी जगह अकेले हैं. लेकिन, एक-एक वोट की ताकत साथ मिलकर जब किसी राजनीतिक दल को सत्ता तक पहुंचा देती है, तब वह दल अकेले नहीं होता. हां, उसके भीतर का संगठन एक होकर सत्ता चलाते हुए वोटरों को फिर अलग-थलग कर देता है. यानी जनता की एकजुटता वोट के तौर पर नजर आये...
More »जमीन पर न उतर सकीं अरबों की रेल परियोजनाएं
दिलीप सिंह, अमेठी। सरकार क्या बदली, योजनाओं की रफ्तार भी थम गई यहां। विकास मीलों पीछे और राजनीति कोसों आगे हो गई है। अमेठी व रायबरेली के लोगों की उम्मीदें "राजनीतिक शिकार" हो गई हैं। यहां कभी गाजे-बाजे के साथ शिलान्यास की गई अरबों की रेल परियोजनाओं की शिलाएं अपनी दुर्दशा पर जार-जार रो रही हैं। यह तो बानगी भर है जनाब। न जाने और कितनी योजनाएं अपने पूरा होने की...
More »टीवी ट्रायल : 'इंस्टैंट इंसाफ" के खतरे - कंदर्प
क्या आपने 'लिंचिंग" के बारे में सुना है? जब कोई भड़काई गई भीड़ किसी व्यक्ति को बिना कोई मुकदमा चलाए तुरंत सजा दे देती है। जैसे दीमापुर (नागालैंड) में 5 मार्च के दिन एक ऐसी ही गुस्साई भीड़ ने जेल तोड़कर रेप के आरोपी को निकाला और उसे मार-मार के मौत के घाट उतार दिया। क्या लगता है ऐसी घटनाओं को पढ़कर या सुनकर? कि ये बर्बरताएं हैं, कि हम अभी...
More »किसान आत्महत्या का अधूरा सच- देविन्दर शर्मा
गुलाबी तस्वीर पेश करने की तमाम कोशिशों के बावजूद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के किसान आत्महत्या संबंधी 2014 के आंकड़े कृषि के स्याह पक्ष को ही सामने लाते हैं। वर्ष 2014 में 12,360 किसानों की आत्महत्या का सीधा अर्थ है कि हर 42 मिनट में देश में एक किसान ने आत्महत्या की। हालांकि एनसीआरबी ने किसानों की आत्महत्या के आंकड़े को दो श्रेणियों-किसानों एवं कृषि मजदूरों, में बांटने का साहसिक...
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