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कौन सुनता है उनकी बात --- बद्री नारायण

भारतीय लोकतंत्र को एक सक्षम लोकतंत्र माना जाता है, लेकिन यह अंतर्विरोधों से भी भरा हुआ है। इसकी एक विडंबना यह है कि भारतीय जनता का एक वर्ग जहां अति मुखर है, वहीं उसका एक बड़ा वर्ग ‘मूक व चुप समुदाय' के रूप में समाज में रहता है। भारतीय समाज का एक भाग जहां सोशल मीडिया, मीडिया के अन्य रूपों, सभा-सोसायटी में बोल रहा होता है, वहीं एक बड़ा भाग...

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एक सड़क के लिए जब 300 लोग बन गए 'मांझी'

बिहार के दशरथ मांझी तो याद ही होंगे आपको, जिन्होंने पहाड़ तोड़कर सड़क बना दी थी. कुछ इससे मिलता-जुलता झारखंड में भी हुआ है. वह अलसायी-सी सुबह थी. लातेहार के शहरी इलाक़े में रहने वाले लोग अभी जगे भी नहीं थे. तभी रांची-लातेहार हाइवे से सटे केंद्रीय विद्यालय के पास ट्रैक्टर पर सवार कुछ लोग पहुंचे. फिर दूसरा ट्रैक्टर आया, फिर तीसरा, चौथा और यह गिनती बढ़ती चली गई. देखते ही देखते...

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अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर लोगों में निराशा बढ़ी, नौकरी सबसे बड़ी चिंता

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा करवाए गये सर्वे के अनुसार खरीदारी को लेकर लोगों का मनोबल गिर रहा है, निर्माण क्षेत्र के कारोबारी निराश हो रहे हैं, मुद्रा स्फिति बढ़ रही है और विकास दर नीचे फिसल रही है। आरबीआई के सर्वे के नतीजे उसकी चार अक्टूबर को पेश की गयी आर्थिक नीति समीक्षा रिपोर्ट से भी मेल खाते हैं। आरबीआई ने आर्थिक नीति समीक्षा रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2017-18...

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विफलता के बड़े मोर्चे-- भारत डोगरा

विश्व इतिहास में समानता और न्याय के मुद््दे सबसे महत्त्वपूर्ण रहे हैं। ये आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, पर इक्कीसवीं शताब्दी आते-आते कुछ ऐसे मुद््दे भी इसमें जुड़ गए हैं जो धरती पर जीवन के अस्तित्व को लेकर हैं। इनमें मुख्य हैं जलवायु बदलाव जैसे पर्यावरण के गंभीर संकट तथा महाविनाशक हथियारों से जुड़े खतरे। अब एक बड़ी चुनौती यह है कि जीवन के अस्तित्व को संकट में डालने वाले...

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पशुपालन से टूटता मोह--- रीता सिंह

यह चिंताजनक है कि कृषि प्रधान देश भारत में पशुपालन के प्रति लोगों की अरुचि बढ़ती जा रही है। मवेशियों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। आजादी के बाद से 1992 तक देश में मवेशियों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। लेकिन उसके बाद इनकी संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। 2007 में पशुओं की संख्या में मामूली वृद्धि हुई थी लेकिन उसके बाद इनकी...

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