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यह हिंसा विकास को रोकती है-- जयति घोष

भारतीय समाज में औरतों के खिलाफ जारी, बल्कि बढ़ती हुई हिंसा को लेकर चिंतित और भयभीत होने की कई सारी वजहें हैं। निस्संदेह, यह कोई नया लक्षण नहीं है, क्योंकि ऐसी हिंसा भारतीय समाज में ढांचागत और स्थानीय, दोनों रूपों में हमेशा से मौजूद रही है। हमें इस तरह की दलील भी सुनने को मिलती है कि इन दिनों ऐसी अनेक घटनाएं हमें इसलिए सुनने को मिल रही हैं, क्योंकि...

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नोटबंदी से नायाब तरीके से निपट रहा है ये गांव

भारत में नोटबंदी के बाद से आम लोगों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में पश्चिम बंगाल के बृंदाबनपुर गांव के लोगों ने मुश्किलों से निपटने का आसान और बेहद पुराना तरीका निकाला है. भारत की अर्थव्यवस्था में 500 और 1000 रुपए के नोट का इस्तेमाल बंद होने से पहले, ये बाज़ार में कुल मुद्रा का 86 फ़ीसदी थे. इनके बाज़ार से बाहर होने के बाद रिज़र्व बैंक...

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झारखंड की संभावनाओं भरी राह-- अलख नारायण शर्मा

एक राज्य के तौर पर झारखंड ने सोलह साल का सफर तय कर लिया है. इस दौरान एक अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है. लेकिन, नये राज्य के बनने के बाद से झारखंड से जैसी उम्मीद की जा रही थी, वैसा कुछ हो नहीं हो पाया. फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि इस दौरान राज्य कई मामले में आगे बढ़ा है....

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आंकड़ों से बाहर अलक्षित स्त्री-श्रम-- सुजाता

पुरानी बॉलीवुड फिल्मों में मां के किरदार को याद करते हुए अक्सर एक चेहरा निरूपा राय जैसी मां का सामने आता है, जो विधवा है, दुखी है, लेकिन स्वाभिमानी है. पति के न रहने पर वह दिन-रात दूसरों के कपड़े सिल कर अपने बच्चों को बड़ा करती है. अचानक यह एहसास होता है कि दुनिया का सारा कारोबार पुरुष के श्रम पर चलता है और स्त्री इसमें केवल मर्द के...

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खामियां बनीं सिरदर्द : हर दिन कमर तक पानी से गुजरते हैं 100 लोग

झाबुआ, ब्यूरो। शहर से 4 किमी दूर गांव नवागांव के तेरू फलिया में पानी की व्यवस्था के लिए कई साल पहले वाटरशेड मिशन से नाले पर बंधन किया गया। दो साल पहले जल संसाधन विभाग ने एक तालाब भी इसके पास बना दिया, लेकिन इस तालाब का वेस्टवियर ऊंचा था। अब फलिए के दोनों ओर से बहने वाले नाले भी तालाब में तब्दील हो गए। फलिए के लोगों के पास आने-जाने...

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