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क्या मोदी सरकार के आर्थिक पैकेज में बैठ चुकी अर्थव्यवस्था को खड़ा करने का दम है?

-सत्याग्रह, मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ रु के आर्थिक पैकेज से जुड़ी घोषणाओं का ब्योरा निपटाया ही था कि चर्चित अंतरराष्ट्रीय एजेंसी गोल्डमैन सैक्स बुरी खबर लेकर आ गई है. उसका कहना है कि भारत अब तक की सबसे बड़ी मंदी का सामना करने वाला है. गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में पांच फीसदी की गिरावट आएगी. गोल्डमैन सैक्स ने अपने...

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कोरोना संकट से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए मोदी सरकार के पास क्या हैं रास्ते

-बीबीसी,  पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने रविवार को केंद्र सरकार की ओर से आए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज़ को नाकाफ़ी बताया है. उन्होंने कहा है कि सरकार की ओर से 10 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का दस फीसदी वाला पैकेज़ जारी होना चाहिए क्योंकि वर्तमान पैकेज़ ने कई क्षेत्रों जैसे ग़रीबों, प्रवासियों, किसानों, मजदूरों, कामगारों, छोटे दुकानदारों, और मध्य वर्ग की उचित मदद नहीं की है. वहीं, बीजेपी की...

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रेड जोन में रहते हैं बैंकों के दो तिहाई कर्जदार

-इंडिया टूडे, कोविड-19 के असर से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार की ओर से घोषित 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की आज तीसरी किस्त आ गई. सरकार की ओर से अब तक जारी राहत पैकेज के केंद्र में बैंक हैं, नकदी है और कर्ज है. सरकार की कोशिश यह है कि सिस्टम में नकदी का प्रवाह कर उसे बैंकों के रास्ते जनता तक पहुंचाया जाए. यही दवा रेहड़ी वालों...

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कोरोना वायरस से जुड़ी भ्रांतियों के कारण, हजारों छोटे महिला मुर्गीपालक किसानों को व्यवसाय में हुआ घाटा

-विलेज स्कवायर, कुंती धुर्वे, मध्य प्रदेश में होशंगाबाद जिले के केसला प्रशासनिक ब्लॉक के जामुंडोल गांव की एक लघु स्तरीय मुर्गी-उत्पादक हैं। केसला के कुल 15,000 परिवारों में से, लगभग 9,000 आदिवासी परिवार हैं। लगभग 13% अनुसूचित जाति से सम्बन्ध रखते हैं। कुंती धुर्वे 2001 में गठित एक सहकारी समिति, केसला पोल्ट्री सोसाइटी की अध्यक्ष भी हैं। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद और बैतूल जिले के 47 गाँवों के आदिवासी और दलित समुदायों...

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हरियाणा: लॉकडाउन की भारी क़ीमत चुका रहे नूंह के ये ग़रीब परिवार

द वायर, देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि 19 दिनों तक बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री ने गरीबों को हो रही तकलीफों पर खेद जताया था. समाज का मिडिल क्लास तमाम चुनौतियों को झेलने के बावजूद भी इसे जरूरी क़दम बता रहा है. यह मिडिल क्लास उन तकलीफों को नहीं समझ रहा, जिससे बेघर मजदूर और गरीब लोग गुजर रहे हैं. ये लोग भूख से उपजी तड़प को नहीं समझते. देश का हर वंचित तबका इस...

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