पूरे एक साल बाद भी विमुद्रीकरण (सामान्यतया िजसे नोटबंदी कहा जाता है) का फायदा अभी भले न दिख रहा हो, लेकिन आगे चलकर इसका फायदा दिखना अभी बाकी है. क्योंकि, शुरू से ही इसके लांग टर्म में फायदा होने की बात शामिल रही है. विशेषज्ञों ने ऐसा माना है. यह बेहद स्वाभाविक है कि किसी भी बड़े और राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक विभिन्नताओं वाले देश में किसी ठोस और कठोर फैसले लेने से...
More »SEARCH RESULT
देश में गैरबराबरी और भूख -- डॉ अनुज लुगुन
कुछ ही दिन पहले झारखंड के सिमडेगा जिले में संतोषी नाम की बच्ची की भूख से हुई मृत्यु कई बड़े-बड़े राजनीतिक दावों को झुठलाती है. हालांकि, मलेरिया और भूख के कारणों के बीच ही पूरा मुद्दा केंद्रित हो गया. लेकिन, यह बदलते समय में बुनियादी जरूरतों की पहुंच व उपलब्धता पर एक बड़ा सवाल है. सिमडेगा झारखंड के दक्षिणी हिस्से में उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर जंगलों से...
More »इंजीनियरिंग कर शुरू किया कबाड़ का बिजनेस, आज है करोड़ों का टर्नओवर
लियर। इंजीनियरिंग करने के बाद लोग बड़ी कंपनी में काम करने के सपने देखते हैं। मैंने भी वही किया। लेकिन एक दिन जब मैने घर पर जुटे कबाड़ को बेचने के लिए बार कबाड़ीवाले को बुलाया, तब मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि एक कबाड़ी के पास हर तरह का वेस्ट आता है। उसे मैनेज करना बहुत जरूरी है। यह सोचकर मैने कबाड़ का बिजनेस शुरू करने का फैसला...
More »देश में सिर्फ पांच से सात बड़े बैंकों की जरूरत : अरविंद सुब्रमणियन
नयी दिल्ली : सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पूंजी आधार मजबूत बनाने के लिए सरकार की तरफ से 2.11 लाख करोड रुपये के पूंजी समर्थन की घोषणा के एक दिन बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने आज बैंकिंग क्षेत्र में सुदृढीकरण और एकीकरण पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि देश में आदर्श रुप से पांच से सात बडे बैंक ही होने चाहिये. शिरोमणि गुरतेग बहादुर खालसा (एसजीटीबी) कालेज में...
More »छोटे कदमों से बड़े बदलाव-- वरुण गांधी
कायदे से तो भारत के गांवों में कोई परेशानी ही नहीं होनी चाहिए थी- आखिर कृषियोग्य भूमि के मामले में हमारा देश दुनिया में दूसरे स्थान पर है. लेकिन, उपजाऊ जमीन के एक तिहाई पर ही सिंचाई की सुविधा है, बाकी क्षेत्र बारिश पर निर्भर है. छोटी होती जोत और खेती की बढ़ती लागत से किसान पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है. वित्त वर्ष 2014 से 17 के...
More »