तेलंगाना के बुनकर मल्लेशम ने पोचमपल्ली साड़ियों पर डिजाइनिंग के लिए अपनी मां को चार फुट लंबे आसु फ्रेम पर एक दिन में हजारों बार धागे घुमाते हुए देखा था। छठी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ चुके मल्लेशम के पास किताबी ज्ञान की जरूर कमी थी लेकिन धागे घुमाने के कारण अपनी मां के कंधों और हाथों में रहने वाले दर्द के प्रति उसकी संवेदना कम नहीं थी। दूसरों की परेशानी...
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बच्चों को पतली दाल और बिना फल के देते हैं भोजन
रायपुर, ब्यूरो। बच्चों को सही पोषण देने के लिए स्कूलों के मिड-डे मील के मेनू में राज्य सरकार ने जो प्रावधान किया, उसका पालन नहीं हो पा रहा है। मेनू के हिसाब से न ही बच्चों को मौसमी फल दिया जा रहा है और न ही गुड़चना। दूध और अंडे के लिए तो कोई प्रावधान ही नहीं है। इससे बच्चों की कैलोरी तो पूरी हो रही है, लेकिन प्रोटीन आधा...
More »कहानी रोशनी की और नौ लाख अति कुपोषित बच्चों के जीवन का सच
वैसे तो यह पूर्णिया जिले के सुदूरवर्ती गांव चंदरही की एक बच्ची और उसके परिवार की कथा है, मगर इस कथा में झांकेंगे तो बिहार के नौ लाख गंभीर रूप से अतिकुपोषित बच्चों के पारिवारिक जीवन की झलक मिलेगी. यहां एक मां है, जिसकी 12 साल की उम्र में शादी हो गयी. परिवार नियोजन के उपायों का पता नहीं था, सो 11 बच्चे हो गये. उनमें से पांच बेहतर स्वास्थ्य...
More »बालश्रमः मुरझाने न पाए पौध
रोचिका शर्मा : बाल मजदूरी हमारे देश की एक बड़ी समस्या है। दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं। छोटे शहरों में बच्चे जहां अपने पारिवरिक धंधों में लगे हैं वहीं बड़े शहरों में हर गली-मुहल्ले में या नुक्कड़ पर गांवों से लाए गए बच्चे या शहर की ही गरीब बस्तियों के बच्चे होटलों, घरों, लघु-उद्योगों आदि में बर्तन धोते, साफ-सफाई करते या सिलाई-बुनाई करते नजर आ जाते हैं।...
More »सब्सिडी : कल्याण या राजनीति? मुफ्तखोरी के दुष्चक्र में फंसता देश
ज्यादातर देशों में एक ओर जहां राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए मुफ्तखोरी को हथियार बनाती हैं, वहीं इसी दुनिया में स्विटजरलैंड जैसा भी एक देश है, जहां की जनता ने सरकार की इस पेशकश को ठुकरा दिया. दूसरी तरफ भारत में देखें तो राजनीतिक पार्टियां और सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देनेवाली नीतियों को प्रश्रय देती रहती हैं भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सब्सिडी एक जरूरी...
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