एक वयस्क व्यक्ति से पूछा जानेवाला सबसे वाजिब सवाल है कि वह अपने जीवन का क्या करना चाहता है. लेकिन, भारतीय स्त्री को कभी इतना वयस्क समझा नहीं गया कि उससे यह सवाल पूछा जाये. बचपन से लेकर शादी के बाद तक उसे इस सवाल का जवाब खुद तलाशने की न इजाजत होती है न अवसर. उसे क्या बनना है और क्या करना है- यह परिवार, समाज, धर्म, स्कूल जैसी...
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हमारी अम्मा, दीदी और बहनजी - मृणाल पांडे
हालिया चुनावों के नतीजों के साथ ही दो कद्दावर महिला मुख्यमंत्रियों (जयललिता और ममता बनर्जी) ने तमाम ऐतिहासिक साक्ष्यों को नकारते हुए दोबारा अपनी राजनैतिक ताकत का लोहा मनवा लिया। गुजरात में आनंदीबेन की कुर्सी फिलवक्त तो सुरक्षित लगती ही है। अब यदि उत्तर प्रदेश में भी अगले बरस बहिन मायावतीजी फिर सत्ता में आ जाती हैं, तो देश के चार महत्वपूर्ण राज्यों की कमान ताकतवर महिला मुख्यमंत्रियों के हाथों...
More »शुक्ल जी न होते, तो चंपारण की दुर्दशा नहीं देख पाते महात्मा गांधी
बिहार में महात्मा गांधी के आने की जब भी चर्चा होगी, वहां राजकुमार शुक्ल भी खड़े मिलेंगे. वह न होते तो शायद चंपारण के किसानों की दुर्दशा गांधी के बरास्ते दुनिया नहीं देख पाती. गांधी के सत्याग्रह के प्रयोग का हमसफर रहे राजकुमार शुक्ल का जन्म 23 अगस्त, 1875 को चंपारण जिला के लौरिया थाना के सतवरिया नामक गांव में हुआ था. इनके पिता कोलाहल शुक्ल थे. उन दिनों निलहों...
More »सबलीकरण के सामने-- नीलम कुमारी
धर्म और आस्था प्रधान देश भारत में स्त्री के व्यक्तित्व की परिभाषा आज भी सटीक नहीं बताई जाती। धर्म में देवीस्वरूपा है वह। आस्था है कि वह शक्ति का अक्षय स्रोत है। पुरुष प्रधान समाज ने ही यह संज्ञा दी है। लेकिन मनुष्य रूप में वह क्या है- इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं। हर उत्तर किसी जालीनुमा कवच की तरह लगता है, जिसकी फांकों से पुरुषवादी षड्यंत्र की झलक गाहे-बगाहे...
More »सूखे की मार, हम जिम्मेवार--- भरत झुनझुनवाला
देश के कई हिस्से सूखे की चपेट में हैं. भूमिगत जलस्तर तेजी से नीचे गिर रहा है. आलम यह है कि समर्थवान अंगूर व मिर्च की खेती कर रहे हैं, जबकि सामान्य किसान पीने के पानी को भी तरस रहे हैं. साठ के दशक में हरित क्रांति के साथ-साथ देश में ट्यूबवेल से सिंचाई का विस्तार हुआ. गंगा के मैदानी इलाके में पहले भूमिगत जल-स्तर बरसात में 5-6 फुट और...
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