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नवउदारवाद से उपजी चुनौतियां- प्रभात पटनायक

जनसत्ता 22 फरवरी, 2014 : यूपीए सरकार और राजग सरकार और यहां तक कि ‘तीसरे मोर्चे’ की अल्पायु सरकार भी आर्थिक नीतियों के मामले में एक जैसी ही रहीं। आज भी, जब चुनावी विकल्प के रूप में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का शोरशराबा हो रहा है, आर्थिक नीतियों के स्तर पर शायद ही कोई बुनियादी फर्क हो। सच्चाई तो यह है कि मोदी खुद इस बात पर जोर देते...

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केजरीवाल ने मोदी से पूछा, रैलियों के लिए कहां से आते हैं पैसे

नयी दिल्‍ली : आम आदमी पार्टी की ओर से भाजपा प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी गयी है. दिल्‍ली के पूर्व मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मोदी से चिट्ठी के माध्‍यम से कुछ प्रश्‍न पूछे हैं. केजरीवाल ने पूछा, आपकी रैलियों के लिए पैसे कहां से आते हैं? उन्‍होंने पूछा क्‍या आपकी रैलियों में होने वाले खर्च मुकेश अंबानी वहन करते हैं. अरविन्द केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को पत्र...

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भ्रष्टाचार क्या परिवार की देन है- शीतला सिंह

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी इन दिनों देश के विभिन्न भागों का दौरा करके अपने ज्ञान, गुण, विद्वता और गौरव का बखान कर रहे हैं। पिछले दिनों एक सभा में उन्होंने कहा, मैं तो अकेला हूं, फिर किसके लिए भ्रष्टाचार करूंगा? जैसे भ्रष्टाचार कोई परिवार का गुण हो। एक समय राजनीति में किन्नरों का प्रवेश भी इसी तर्क के साथ हुआ था कि उनका कोई परिवार नहीं होता,...

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गुजरात मॉडल की असलियत- कृष्ण स्वरुप आनंदी

जनसत्ता 19 फरवरी, 2014 : गुजरात का विकास चर्चा का विषय बना दिया गया है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि अन्य राज्यों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे देश के लिए भी एक बेहतरीन अनुकरणीय मॉडल गुजरात ने प्रस्तुत किया है। उस मॉडल को देशव्यापी बनाने का सपना जोर-शोर से लोगों को दिखाया जा रहा है। विकास, सुशासन, समृद्धि, रोजगार सृजन जैसे शब्द तेजी से हवा में उछाले...

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बातों और चर्चाओं की राजनीति - बद्रीनारायण

उत्तर प्रदेश और बिहार के गांवों में नानी, दादी रात में सोते वक्त अपने बच्चों को जब कहानी सुनाया करती थीं, तब कहानी के अंत में समापन वाक्य की तरह एक खास बात कही जाती थी। वह वाक्य होता था- न कहवइया के दोष, न सुनवइया के दोष, जे कहनी उपारजे ओकर दोष। यानी न कहने वाला का दोष है, न सुनने वाले का, जो इन कथाओं को रचता है, उसका...

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