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जहां यह जीत अतीत से जुड़ती है- महेश रंगराजन

साल 1971 के बाद पहली बार कोई प्रधानमंत्री न सिर्फ अपने दम पर दूसरी बार सत्ता में लौटा है, बल्कि बहुमत में भी उसने इजाफा किया है। भारतीय जनता पार्टी इस बार 300 के पार जाकर ठहरी है, जबकि पिछले चुनाव में उसे 282 सीटें मिली थीं। इस एकतरफा जीत का संदेश किसी एक पार्टी या सत्तारूढ़ गठबंधन की विजय तक सीमित नहीं है। यह दरअसल राजनीतिक नेतृत्व के रूप,...

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विपक्ष के इस हश्र में कुछ नया नहीं- हरजिंदर

अगर आम चुनाव में नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी की जीत दुनिया की सबसे बड़ी जीत है, तो विपक्षी दलों की हार को क्यों न दुनिया की सबसे बड़ी हार मान लिया जाए? यह तय है कि विपक्षी दल इस तरह के तर्क को स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन बहुत से लोग ऐसा मान चुके हैं और शायद इसीलिए विपक्ष को मिलने वाली लानतों का ढेर लगातार ऊंचा होता जा रहा...

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प्रत्याशियों को चुनाव में अनुदान का विकल्प- भरत झुनझुनवाला

एनडीए की भारी जीत ने हमारी चुनावी व्यवस्था में पार्टियों के वर्चस्व को एक बार फिर स्थापित किया है। विशेष यह कि चुनाव में जनता के मुद्दे पीछे और व्यक्तिगत मुद्दे आगे थे। यह लोकतंत्र के लिए शुभ सन्देश नहीं है। स्वतंत्रता हासिल करने के बाद गांधीजी ने सुझाव दिया था कि कांग्रेस पार्टी को समाप्त कर दिया जाए और जनता द्वारा बिना किसी पार्टी के नाम के सीधे अपने...

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झारखंड: बीफ़ खाने के अधिकार पर कथित पोस्ट लिखने वाले आदिवासी प्रोफेसर गिरफ़्तार

बता दें कि हांसदा एक आदिवासी कार्यकर्ता और थियेटर कलाकार हैं. अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने आदिवासी समाज के लोगों द्वारा गोमांस खाने के अधिकार की बात की थी. हफिंगटन पोस्ट के अनुसार, जीतराई हांसदा के मामले को देखने वाली टीम के एक वकील ने बताया कि उनके द्वारा लिखे गए एक फेसबुक पोस्ट के लिए जून 2017 में उनके खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई थी. अपना नाम गुप्त रखने की...

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जाति के समीकरण का टूटना- मनीषा प्रियम

गुरुवार को आए चुनावी नतीजे भारतीय लोकतंत्र के लिए काफी अहम हैं। नरेंद्र मोदी, भाजपा और उनका राष्ट्रवाद अब केंद्र में एकछत्र शासन कर सकने की स्थिति में हैं। कांग्रेसवाद और क्षेत्रवाद, दोनों का एक साथ पतन हुआ है। बेशक कभी इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के लिए कहा जाता था कि वह ‘टीना' फैक्टर यानी ‘देअर इज नो अल्टरनेटिव टु इंदिरा गांधी' के कारण बार-बार जीतकर आती है,...

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