सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग) : महकमा क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालयों में 14 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के ऐसे विद्यार्थी जिन्होने कक्षा आठ, नौ व दस में प्रवेश लिया था, मगर बाद में स्कूल से अनुपस्थित रहने लगे और परीक्षा में भी शामिल नहीं हुए, पारा शिक्षक उनके घर जाएंगे तथा स्कूल छोड़ने का कारण पूछेंगे। इन शिक्षकों की यह जिम्मेदारी होगी कि वे उन बच्चों के अभिभावकों से वार्ता कर उनका स्कूल में आना सुनिश्चित कराएं।...
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प्राथमिक स्कूल में हों पांच स्थायी शिक्षक : यशवंत
गगरेट : हिमाचल प्रदेश शिक्षक महासंघ का राज्यस्तरीय 24वां वार्षिक अधिवेशन मंगलवार को गगरेट में हुआ। इसमें शिक्षकों व बेरोजगार प्रशिक्षित शिक्षकों की समस्याओं पर मंथन किया गया। महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष प्रो. यशवंत सिंह राणा ने कहा कि हड़ताली जेबीटी प्रशिक्षुओं, बाल सेविकाओं, प्रयोगशाला सहायकों और लाइब्रेरी सहायकों के बांड शीघ्र भरे जाने चाहिए। प्राथमिक शिक्षा के स्तर को सुदृढ़ करने के लिए हर प्राथमिक स्कूल में कम से कम पांच स्थायी शिक्षकों का प्रबंध किया...
More »बच्चों के पोषाहार से पलते बिचौलियों के परिवार
पटना स्कूली बच्चों के पोषाहार से बिचौलियों का परिवार पल बढ़ रहा है। स्कूलों के लिए आवंटित पोषाहार का अनाज महीनों तक राज्य खाद्य निगम के गोदाम में पड़ा रहता है। यह स्थिति न केवल पटना बल्कि भोजपुर, रोहतास, कैमूर जिले सहित पूरे प्रमंडल की है। बीते अप्रैल महीने में पटना के चांदमारी रोड में करीब 15 सौ बोरे में पोषाहार का चावल जब्त किया गया। इस मामले में कंकड़बाग थाने में नामजद प्राथमिकी हुयी...
More »स्वस्थ पर्यावरण के लिए धरहरा की परंपरा का अनुकरण करें : नीतीश
भागलपुर। जहां चारो तरफ अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हो रही है, वहीं धरहरा गांव में सामुदायिक प्रयत्न से पेड़ लगाए जा रहे हैं। यह ऐसा गांव है जहां लोग कन्या पैदा होने पर खुशी मनाते हैं और उनके नाम पर दस फलदार पेड़ लगाते हैं। स्वस्थ पर्यावरण के लिए धरहरा की परंपरा का अनुकरण पूरे सूबे के लोगों को करना चाहिए। यह बातें रविवार को नवगछिया अनुमंडल के धरहरा गांव में आयोजित सभा को संबोधित...
More »सुबह के इस दौर में भी छूट रहीं बच्चियां
पटना [जागरण टीम]। सरकारी प्रयास शुरुआती दौर पर रंग तो ला चुके हैं, लेकिन मैट्रिक के बाद की पढ़ाई-लिखाई के हलके में राज्य की ज्यादातर बच्चियों के लिए अपना वजूद बनाए रख पाना आज भी बहुत मुश्किल हो रहा है। 21वीं शताब्दी के 10 साल गुजरने के बाद भी शैक्षणिक संस्थानों की कमी और बुनियादी सुविधाओं की किल्लत ने उन्हें मैट्रिक की बाद की पढ़ाई के मद्देनजर तकरीबन 30 साल पीछे ही छोड़ रखा है। ...
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