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हाथरस ‘सामूहिक बलात्कार’ की घटना का एक साल: गहराता जाति विभाजन, कोर्ट रूम ड्रामा और एक बेटी की यादें

-द प्रिंट, हाथरस में ‘सामूहिक बलात्कार’ की पीड़िता 20 वर्षीय युवती के घर की दीवारों पर उसकी कोई तस्वीर नहीं लगी है. बेटी के शव का जबरन दाह संस्कार किए जाने के दिन मां ने जो साड़ी पहनी थी, वह बरामदे की छत पर टंगी नजर आ रही है. एक तुलसी के पौधे की ओर इशारा करते हुए उसकी मां ने कहा, ‘न्याय मिलने के बाद हम उसकी एक बड़ी तस्वीर बनवाकर लगवाएंगे....

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आतंकरोधी कानून/राज्य दर्पण/डरो, डरो, जल्दी डरो

-आउटलुक, पता नहीं, बुजुर्ग आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत ने झकझोरा या नहीं, लेकिन अरसे बाद सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह की प्रासंगिकता पर सवाल उठा और कई हाइकोर्टों से यूएपीए, एनएसए जैसे कानूनों के दुरुपयोग पर तीखे फैसले आए तो सुलगते सवाल ज्वाला की तरह फूट पड़े। बेशक, हाल के कुछ वर्षों में असहमति और असंतोष को दबाने की खातिर इन कानूनों के दुरुपयोग के मामले बेहिसाब बढ़े हैं,...

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क्या विश्वविद्यालय विद्यार्थियों के जीवन में अपनी निर्धारित भूमिका निभाने में विफल हो रहे हैं

-द वायर, शाम का समय है. आदतन मोबाइल उठाकर इंटरनेट डाटा ‘ऑन’ करता हूं. ‘वॉट्सऐप’ के ‘स्टेटस’ देखता हूं. ‘वॉट्सऐप स्टेटस’ को मैं यूं ही देखकर छोड़ देने वाली चीज़ नहीं मान पाता. मुझे हमेशा लगता है कि विद्यार्थियों और नौजवानों के प्रसंग में तो उसकी कभी भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. इस बात को तो कोई मनोवैज्ञानिक शोध ही स्पष्ट कर सकता है कि वह कौन-सी प्रक्रिया है, जिसके कारण...

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वे दस गलत नीतियां जो मोदी सरकार के सात साल को परिभाषित करती हैं

-जनपथ, मोदी सरकार ने सात साल पूरे कर लिए हैं। किसी भी समाज, देश या व्यक्ति के मूल्यांकन के लिए सात वर्ष पर्याप्त होते हैं। सात साल में ऐसी दस महत्वपूर्ण गलतियाँ थीं, जो निस्संदेह मोदी सरकार को परिभाषित करेंगी। विमुद्रीकरण: यह किसी भी सूची में सबसे ऊपर होगा क्योंकि इसकी सफलता की कमी और व्यापक तबाही ने अर्थव्यवस्था पर इसका असर डाला। विदेशों में बिजनेस स्कूलों में अब एक चेतावनी के रूप...

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कोरकू आदिवासी बहुल मेलघाट की पहाड़ियों पर कोरोना से ज्यादा कोरोना के टीके से दहशत!

-न्यूजक्लिक, अमरावती (महाराष्ट्र): "यहां यदि आप कोरोना के बारे में बातचीत करेंगे तो पता चलेगा कि लोग सरकारी अस्पताल जाने को तैयार नहीं हैं। कारण यह है कि लोगों को लगता है कि उन्होंने कोरोना का इलाज यदि सरकारी अस्पताल में कराया तो डॉक्टर उन्हें जिला अस्पताल अमरावती भेज देंगे, जहां उनका कोई इलाज नहीं होगा और वहां उन्हें बीमार रखे-रखे मार दिया जाएगा। फिर मौत के बाद उनकी लाश तक घर...

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