-डाउन टू अर्थ, देशभर में लॉकडाउन का असर सभी लोगों पर तो हुआ ही है लेकिन हमारे समाज का एक ऐसा वर्ग है जो पहले से हाशिये पर है उनके आजीविका पर इसका असर दिखाई देने लगा है। “तीन हफ्ते पहले हमारे यहाँ कोचिया आया था, और अब नहीं आ रहा है जिस से हमारे सुपा, टोकरी, टुकना कुछ भी बिक नहीं रहा है. हम तो अभी बनाना छोड़ दिए हैं” यह...
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क्यों कुपोषण से प्रभावित श्योपुर में बच्चों को पोषण केंद्रों में ले जाने से कतरा रहे हैं परिजन?
मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के विजयपुर तहसील अंतर्गत आने वाले ठाकुरपुरा गांव की चंदा डेढ़ वर्ष की है लेकिन उसका वजन पांच किलो भी नहीं है. अति गंभीर कुपोषित की श्रेणी में आने वाली चंदा को इलाज और उचित पोषण के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) ले जाने के लिए चिह्नित किया गया है. लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और प्रशासन के प्रयासों के बावजूद चंदा के परिजन उसे एनआरसी ले जाने...
More »राजस्थान के आदिवासी भील किसी भी दल की प्राथमिकता में क्यों नहीं हैं
चित्तौड़गढ़: खाट पर पड़े ढेरों फटे कपड़े, कुछ बर्तन, बुझा चूल्हा, पीपे में थोड़े से सूखे आटे के साथ रखी कुछ रोटी और लोहे के संदूक के अलावा इस खपरैल ओढे ‘घर' में कुछ नहीं है. चूल्हे के पास ही तीन महीने पहले एक बेटी को जन्म देने वाली गोपी भील (40) दर्द से कराह रही हैं क्योंकि उनका प्रसव घर पर ही हुआ और उसके बाद उनकी देखभाल एक जच्चा...
More »आदिवासी अधिकार के नाम पर- शशिशेखर
जिस समय कश्मीर का अलगाववाद पूरे देश में चिंता का विषय बना हुआ है, ठीक उसी समय झारखंड के कुरूंगा गांव में एक दूसरा दृश्य दिख रहा है। वहां एक शिलालेख पर लिखा है- ‘भारत में गैर आदिवासी दिकु, विदेशी केंद्र सरकार को शासन चलाने और रहने का लीज एग्रीमेंट 1969 ई. में ही समाप्त हो गया है।' ‘वोटर कार्ड (मतदान पहचान पत्र) और आधार कार्ड (आम आदमी का अधिकार कार्ड) आदिवासी...
More »अधिकारों से बेदखल आदिवासी-- मोहन गुरुस्वामी
तेलंगाना स्थित पूर्ववर्ती आदिलाबाद जिले के निवासी गोंड एवं अन्य आदिवासियों के प्रतिनिधि संगठन तथा तेलंगाना सरकार के बीच चल रही बातचीत इस सप्ताह विफल हो जाने के बाद आदिवासी नेताओं ने घोषणा कर दी कि अब वे अपने गांवों में ‘स्वशासन' कायम करने की अपनी पूर्व घोषणा पर अमल करेंगे. ऐसा कर वे झारखंड के आदिवासियों द्वारा पहले से ही चलाये जा रहे ऐसे अभियान का ही अनुसरण कर...
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