बाबा मायाराम, पालक्काड़ “हम जल, जंगल और जंगली जानवरों का संरक्षण करने के साथ-साथ आदिवासियों की आजीविका को भी बचाने की कर रहे हैं। जंगल से हम उतना ही लेते हैं, जितनी जरूरत होती है। जंगली जानवरों के लिये को उनके पसंद के फल, फूल, पत्ते और कंद छोड़ देते हैं; जिससे वे भी जिये और जंगल की जैव-विविधता भी बनी रहे।” यह मंजू वासुदेवन थीं, केरल के त्रिचूर जिले में ‘फॉरेस्ट...
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कठिन मौसम और बढ़ते पर्यटन के बीच बढ़ती लद्दाख की कचरे की समस्या
मोंगाबे हिंदी, 9 अक्टूबर केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख पिछले कुछ सालों में एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है। हर साल गर्मी के मौसम में यहां सैलानियों की भीड़ लगी होती है। सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया के विभिन्न भागों से पर्यटक यहां खासी तादाद में आते हैं। जहां एक और पर्यटकों की संख्या और उनके लद्दाख में रुकने की अवधि बढ़ने से प्रदेश की आमदनी में इज़ाफ़ा हो...
More »‘दिन-रात मेहनत के बाद भी मेरी आमदनी न के बराबर है’
पारी, 20 जुलाई एक सामान्य आकार के पश्मीना शॉल के लिए सूत कातने में फ़हमीदा बानो को एक महीने लग जाते हैं. चांगथांगी बकरियों से मिलने वाले मुलायम और बारीक ऊन को अलग कर उनकी कताई करना कड़ी मेहनत और सफ़ाई का काम है. क़रीब 50 साल की ये कारीगर बताती हैं कि महीने भर की मेहनत के बदले में उन्हें बमुश्किल 1,000 रुपए मिलते हैं. “अगर मैं लगातार काम करूं,...
More »लक्षद्वीप के कोएर श्रमिक
पारी, 30 जून लक्षद्वीप द्वीपसमूह के सभी द्वीप नारियल के असंख्य वृक्षों से भरे हुए हैं, और उनके सूखे हुए छिलकों से कोएर (नारियल के सूखे छिलकों का रेशा) निकालना यहाँ एक बड़ा उद्योग है. मछली पकड़ने और नारियल की पैदावार करने के के साथ-साथ कोएर की कताई यहाँ के लोगों का एक प्रमुख पेशा है. (2011 की जनगणना के अनुसार) लक्षद्वीप में नारियल के छिलके निकालने की कुल सात, कॉयर के...
More »ओड़िशा के कंधमाल में कई परिवारों का पेट पालता है ये मुर्गा
गाँव कनेक्शन, 20 जून ओड़िशा के कंधमाल के सिरुबल्ली गाँव की कैफुला को इंतज़ार है अपने कड़कनाथ के वज़न बढ़ने का। बच्चों की तरह उसकी सेवा की है। अब वो बड़ा होकर उनका सहारा बनेगा। सिर्फ ढाई किलो भी अगर वज़न हो गया तो 700 रुपए तक वो कैफुला को अपने दम पर दिला देगा। जी हाँ, ये कड़कनाथ कोई और नहीं बल्कि एक मुर्गा है। कोंध जनजाति की कैफुला ने...
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