एक ओर मामूली चोरी के आरोप में देश भर की जेलों में हजारों कैदी बरसों से सड़ रहे हैं, दूसरी तरफ जनता को अरबों रुपए का चूना लगाने वाले कॉरपोरेट जगत के सफेदपोश अपराधी छुट््टा घूम रहे हैं। खुली अर्थव्यवस्था का यह कड़वा सच जगजाहिर है। इस सच के साथ कुछ अपवाद भी जुड़े हैं। ‘सत्यम कंप्यूटर्स' के संस्थापक और उसके पूर्व प्रमुख बी रामलिंग राजू का मामला अपवाद की...
More »SEARCH RESULT
जयंती के पत्र से यूपीए की मनमानी के अफवाह की बात सच साबित हुई : अरुण जेटली
नयी दिल्ली : केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जयंती नटराजन के पत्र प्रकरण में कांग्रेस व पूर्व की यूपीए सरकार पर करारा हमला बोला है. उन्होंने पत्रकारों के कहा कि पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के पत्र से यह स्पष्ट हो गया कि पिछली यूपीए सरकार किस तरह 10 सालों तक देश पर शासन करती रही और इस तरह सरकार के संचालन से देश की अर्थव्यवस्था को क्षति होती रही. उन्होंने...
More »गरीबी और प्रधानमंत्री मोदी- विकास नारायण राय
जनसत्ता 30 मई, 2014 : भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने की औपचारिकता के बाद मोदी ने संसद के केंद्रीय हाल से संबोधन में अपनी सरकार को गरीबों, युवाओं और स्त्रियों को समर्पित करार दिया। कॉरपोरेट जगत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चहेते ‘चायवाले’ के लिए इस दिखावे को अधिक दिनों तक निभाना टेढ़ी खीर ही होगी। गरीबों को लेकर मोदी का नवउदारवादी ट्रैक रिकार्ड सर्वाधिक संदेहास्पद रहा है।...
More »दौलत के साथ ही बढ़ी गैर-बराबरी- सत्येंद्र रंजन
शायद यह अतिरंजना हो, लेकिन पश्चिमी मीडिया में थॉमस पिकेटी को नया कार्ल मार्क्स कहा गया है। ऐसा उनके प्रशंसकों ने तो संभवतः कम कहा है, लेकिन उन लोगों को उनमें मार्क्स की छाया ज्यादा नजर आई है, जो गैर-बराबरी का मुद्दा उठते ही खलबला जाते हैं। उनकी परेशानी का सबब यह है कि पिकेटी ने अपनी बहुचर्चित किताब 'कैपिटल इन ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी' में आमदनी और धन की विषमता को...
More »नमक के नए दारोगा- विकास नारायण राय
जनसत्ता 11 अप्रैल, 2014 : संसाधन घोटालों (कोयला, लोहा, गैस, तेल, रेत, जल, जंगल, जमीन) से बोझिल राजनीतिक वातावरण में, देश के शासन का ईमानदारी से संचालन, 2014 के चुनावी घोषणापत्रों की एक प्रमुख थीम है। तीस हजार करोड़ रुपए चुनाव में दांव पर लगाने वाले राजनीतिकों में होड़ है कि अगला ‘नमक का दारोगा’ कौन बनेगा! नमक जैसे सुलभ पदार्थ को औपनिवेशिक लूट का जरिया बनाए जाने की पृष्ठभूमि...
More »