-न्यूजलॉन्ड्री, इस सप्ताह अमेरिकी स्टॉक बाज़ार में पानी की संभावित क़ीमतों पर बोली लगने की शुरुआत हो गयी है. यह इतिहास में पहली दफ़ा हो रहा है और इसी के साथ पानी भी सोने-चांदी, तेल, अनाज जैसी चीज़ों की क़तार में आ गया है, जिसकी क़ीमत अब वॉल स्ट्रीट पर तय होगी. दो साल पहले कैलिफ़ोर्निया में बने पानी का दाम तय करने वाले एक सूचकांक- नैसडैक़ वेलेस कैलिफ़ोर्निया वाटर इंडेक्स-...
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एक समय था जब भारत की एक कहानी हुआ करती थी
-सत्याग्रह, 15 अगस्त 2007 यानी भारत की आजादी के साठ साल पूरे होने के मौके पर मैंने देश के हालात को लेकर हिंदुस्तान टाइम्स में एक लेख लिखा था. उन दिनों यह खूब कहा जा रहा था कि भारत एक उभरती हुई विश्वशक्ति है. चीन पहले ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपना लोहा मनवा चुका था और कहा जा रहा था कि अब हमारी बारी है. बहुत से लोगों का मानना था...
More »पर्यावरण पर नई दृष्टि जरूरी
-आउटलुक, “बहुविषयक पढ़ाई पर्यावरण समझ विकसित करने में मददगार, मगर प्रयोगधर्मी शिक्षा भी अनिवार्य” कई वर्षों से पर्यावरण इतिहास के पठन-पाठन से जुड़े होने के कारण यह गहरा एहसास है कि अर्थशास्त्र, भूगोल, जीव विज्ञान और रसायन विज्ञान जैसे विषयों पर जानकारी के अभाव में उसे ठीक से समझ पाना काफी मुश्किल है। इस मायने में पर्यावरण अध्ययन का संबंध बहुविषयक है। इसके दायरे में वह सब आता है जिससे मानव सभ्यता...
More »कोरोना के इस वैश्विक संकट के समय आज गांधी होते, तो क्या करते?
-लल्लनटॉप, आज का वैश्विक संकट तिहरा है. कोविड महामारी, गहन व्यापक आर्थिक मंदी और मानव अस्तित्व को खतरे में डालने वाला पर्यावरण परिवर्तन. इन सबके अलावा, ऐसी परिस्थिति में राह दिखाने वाले राजनीतिक और नैतिक नेतृत्व का दुनियाभर में अभाव है. इसलिए उत्तर तो कहीं और ही ढूंढ़ना पड़ेगा! महात्मा गांधी के सामने यह चुनौती खड़ी होती, तो उन्होंने क्या किया होता? इसका जवाब कहां खोजा जाए? यह तो वे खुद...
More »गरीबों की फिक्र करो
-आउटलुक, महज कुछ महीनों में ही कोविड-19 की महामारी ने समूची दुनिया में उथल-पुथल ला दी। दुनिया भर की सरकारें इस पर काबू पाने मे जुटी हुई हैं। इस संकट में बेरोजगारी बढ़ी है और खाने-पीने और आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई भी बाधित हुई। पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में लोगों का निराश होना स्वाभाविक है। फिर भी यह वक्त मानव जीवन-शैली पर चिंतन...
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