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आज़ादी@75: आंदोलन के 74 बरस और नई उम्मीद और नया रास्ता दिखाता किसान आंदोलन

-न्यूजक्लिक,  आज जब हम अपनी आजादी की 74वीं वर्षगांठ और 75वां दिवस मना रहे हैं, संविधान सभा के अंतिम भाषण में डॉ. आंबेडकर द्वारा दी गयी चेतावनी बेहद प्रासंगिक है जिसमें उन्होंने  कहा था कि देश एक अन्तरविरोधों भरे दौर में प्रवेश कर रहा है, हम एक राजनीतिक लोकतंत्र तो बन गए लेकिन सामाजिक लोकतंत्र कायम न हुआ तो यह राजनीतिक लोकतंत्र भी खतरे में पड़ जायेगा। इन 74 वर्षों में देश...

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आलेख : नृशंस साम्राज्य

-आउटलुक, “ऐसा प्रचंड संकट आजादी के बाद से नहीं आया था, अब तो मोदी समर्थक भी मानने लगे हैं कि महामारी में सरकार का रवैया सारे दायित्व से हाथ झाड़ लेने का रहा है” इस 9 मई को पिंजरा तोड़ आंदोलन की अगुआ छात्र एक्टिविस्ट नताशा नरवाल के पिता महावीर नरवाल कोविड महामारी से जंग हार गए। वे दुनिया से विदा होने के पहले अपनी बेटी से मिल या बात नहीं कर...

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शंख घोष: हममें से कोई पूर्ण नहीं, सब आंशिक ही हैं…

-द वायर, ‘बंगाल का विवेक आज विदा हो गया.’ लेखक मित्र कुमार राणा ने बिना किसी भावुकता के कहा. शंख घोष के न रहने की खबर सुनकर कुमार को फोन किया था. अभी उनका जाना प्रतीकात्मक ही है. बंगाल में जिस बदलाव की धमक नहीं, धमकी है, उस समय शंख घोष का उससे दूर चले जाना क्या एक सूचना है? कवि को उसके समाज का, जनता का अनिर्वाचित विधायक कहा जाता है. उसकी...

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'पक्ष'कारिता: ‘उदन्‍त मार्तण्‍ड’ की धरती पर हिंदूकरण (वाया हिंदीकरण) की उलटबांसी

-न्यूजलॉन्ड्री, पश्चिम बंगाल के ऐतिहासिक बताए जा रहे असेंबली चुनाव में अगर इस बात को ध्‍यान में रखा जाय कि देश का पहला अंग्रेज़ी का अखबार और पहला हिंदी का अखबार, दोनों ही कोलकाता से छपना शुरू हुए थे, तो इस चुनाव को देखने-समझने की एक अलग दृष्टि हम पा सकते हैं. पश्चिम से छापाखाने का आना, अखबारों का छपना और सूचनाओं का सार्वजनिक वितरण कई मायने में उस परिघटना का...

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‘देश ख़तरे में है’ का हौवा स्वतंत्र विचारधारा वालों को प्रताड़ित करने का बहाना है

-द वायर, देश में आजकल हर चीज़ खतरे में दिखती है. चाहे धर्म हो, संस्कृति हो, सांप्रदायिक सद्भाव हो या समाज में शान्ति हो, सब बात-बात पर खतरे में बताए जाते हैं. हमारी स्त्रियां तक खतरे में बताई जाती हैं कि विधर्मी उन्हें बहला-फुसलाकर शादी करके धर्म परिवर्तन करा देते हैं. कितनी बार तो हमारा भूतकाल, जो बदल नहीं सकता, वो भी खतरे में बताया जाता है क्योंकि बहुसंख्यकवादी लोग ये आरोप लगाते...

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