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आर्थिक आतंकियों को मिले सजा-- तरुण विजय

नीरव मोदी हों या मेहुल चौकसी, विजय माल्या हों या कोई और, एक ऐसे समय में जब देश किसान, मजदूर, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की बात कर रहा है और सीमाओं पर हमारे सैनिक हर दिन खून की होली खेलते हुए मातृ-भूमि की रक्षा कर रहे हैं, उस समय देश से छल कर हजारों करोड़ के घोटाले करनेवाले वस्तुत: आर्थिक अपराधी नहीं, आर्थिक आतंकवादी हैं, जिन्हें वही सजा मिलनी चाहिए,...

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भूख में तनी हुई मुट्ठी का नाम...-- रविभूषण

धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम...

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नक्सलवाद को पस्त करने की चुनौती - संजय कपूर

अप्रैल का यह महीना केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के लिए बेहद बुरा रहा है। इस माह इसे इतनी जनहानि उठानी पड़ी, जो बीते सात वर्षों में सर्वाधिक है। पिछले 11 मार्च को भी माओवादी हमले में सीआरपीएफ के 12 जवान शहीद हुए थे, लेकिन वो घटना इसलिए सुर्खियों में नहीं आई, क्योंकि उसी दिन उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे आए थे और सारा देश उसी...

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राजद्रोह के मामले बिहार और झारखंड में सबसे ज्यादा-- एनसीआरबी की नई रिपोर्ट

  अलगाववादी रुझान वाले पूर्वोत्तर या जम्मू-कश्मीर में नहीं बल्कि बिहार और झारखंड में राजद्रोह की सबसे ज्यादा घटनाएं प्रकाश में आयी हैं. नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) विगत दो वर्षों से राजद्रोह के मामलों के बारे में आंकड़े प्रकाशित कर रहा है और ये आंकड़े बताते हैं कि अन्य राज्यों की तुलना में 2015 में राजद्रोह के सर्वाधिक घटनाएं बिहार में प्रकाश में आईं जबकि झारखंड 2014 में राजद्रोह की घटनाओं...

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आजादी : सपना और हकीकत-- रविभूषण

राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की परिणति 'सत्ता के हस्तांतरण' में हो जायेगी, यह उन स्वाधीनता सेनानियों ने कभी नहीं सोचा था, जिनके लिए आजादी का अर्थ पूरी आजादी से था. आजादी की लड़ाई में एक साथ कई धाराएं सक्रिय थीं. केवल कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी थी.  राष्ट्रीय स्वाधीनता-संघर्ष का इतिहास कांग्रेस का इतिहास नहीं है. 'स्वराज' के स्वरूप को लेकर उस दौर में सभी एकमत नहीं थे. आजादी...

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