-द प्रिंट, मुफ्त की एक कीमत होती है जो समय पर ना चुकाई जाए तो उसका ब्याज सांसें चुकाती हैं. इसी तरह प्रकृति शोषण आधारित इमारतों का एक सीटूसी यानी कास्ट टू कंट्री होता जो पीढ़ियों को चुकाना होता है. बानगी देखिए हलांकि नारों में डूबा समाज इस उदाहरण को एक व्हाट्स्एप जोक से ज्यादा अहमियत नहीं देता– सुप्रीम कोर्ट की एक आकलन कमेटी ने एक पेड़ की सालाना कीमत 74,500...
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मोबाइल कंपनियां अपमानित करने की हद तक आम जिदंगी में घुस गई हैं
-न्यूजलॉन्ड्री, देश में मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के रिकॉर्ड संदेश प्रसारित करती है. इन संदेशों का नागरिक व मानव अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार व उसके मातहत वाली संस्थाओं व आम नागरिकों के संवेदनशील प्रतिनिधियों की समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए. मंत्री, ट्राई और संसदीय समिति के नाम पत्र में यह उदाहरण दिया गया है मोबाइल कंपनियां अपने रिकॉर्ड किए गए एक संदेश...
More »इतने खतरे के बाद भी भारत चीनी टेलिकॉम कंपनियों पर यूरोप जैसी कार्रवाई क्यों नहीं कर पा रहा है?
-सत्याग्रह, केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले दिनों राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए दो ऐसे फैसले लिए जिसने चीन को चिंतित कर दिया है. पहले सरकार ने दूरसंचार और ऊर्जा क्षेत्र में चीन के कई उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया. कहा जा रहा है कि इन उपकरणों पर ‘स्पाईवेयर’ या ‘मालवेयर’ की चिंता के चलते रोक लगाई गई है. इसके बाद सरकार ने टेलिकॉम सेक्टर के लिए ‘नेशनल...
More »संकट में फेसबुक: दायर हुए चार दर्जन मुकदमे, शेयरों में गिरावट
-इंडिया टूडे, अमेरिकी शेयर बाजार में बीते दो दिनों में फेसबुक के शेयर में 10 डॉलर प्रति शेयर से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है. गुरुवार को कंपनी का शेयर 277.12 डॉलर के स्तर पर बंद हुआ. शेयरों में इस गिरावट की वजह अमेरिका की सरकार और 48 राज्यों की ओर से फेसबुक पर दायर किए गए मुकदमे हैं. आरोप है कि फेसबुक ने एकाधिकार बनाने और छोटे प्रतिस्पर्धियों को ‘कुचलने’...
More »वायनाड के आदिवासी छात्रों ने शिक्षा में संस्थागत भेदभाव के खिलाफ उठाई आवाज
-कारवां, केरल का आदिवासी समुदाय हमेशा से ही माध्यमिक और उच्च शिक्षा के मामले में बड़े नुकसान में रहा है और कोविड-19 महामारी के समय में आदिवासी छात्रों के सामने आने वाली मुश्किलें बढ़ गई हैं. केरल में स्कूलों और कॉलेजों ने डिजिटल क्लास लेनी शुरू की है लेकिन अक्सर आदिवासी और दलित छात्रों के लिए इस रूप में पढ़ाई कर सकना लगभग असंभव है. समाज के हाशिए पर रहने वाले...
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