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पांच राज्यों में चुनाव: डिजिटल प्रचार से फायदा किसका

-न्यूजलॉन्ड्री,  जैसे- जैसे पांचों राज्यों के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे- वैसे राजनीतिक दलों और नेताओं का प्रचार तेज हो गया है. लेकिन इस बार का चुनाव एक अलग अंदाज में होने जा रहा है. दरअसल इस बार हमेशा की तरह बड़ी-बड़ी रैलियां नहीं देखने को मिलेंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव आयोग ने कोरोना के चलते पांचों राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बड़े पैमाने पर सभाओं...

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कोरोना महामारी के बीच 17 महीनों में दिल्ली सरकार ने विज्ञापन पर खर्च किए 490 करोड़

-न्यूजलॉन्ड्री,  12 जनवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पंजाब के मोहाली में थे. यहां डोर टू डोर प्रचार के सवाल पर केजरीवाल ने कहा, ‘‘कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने डोर टू डोर कैंपेनिंग के लिए कहा है, लेकिन हम तो डोर टू डोर ही करते हैं. ये ट्रेडिशनल तरीका होता था चुनाव लड़ने का. अब तो पैसे खर्चते हैं. बड़े-बड़े एड...

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भारत की प्रशासनिक सेवाओं में महिलाएं इतनी कम क्यों?

-इंडियास्पेंड, साल 1951 में पहली बार जब भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में महिलाओं को शामिल करने का फैसला लिया गया तो एक महिला थी, लगभग सात दशक बाद 2020 में महिलाओं की संख्या कुल आईएएस अधिकारियों का सिर्फ 13% है। अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) द्वारा संकलित भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी डेटासेट (Indian Administrative Service Officers Dataset) को लेकर किए गए विश्लेषण में इंडियास्पेंड ने पाया कि 1951...

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देश में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर बढ़ रहे हमलों के बीच जवाबदेही क़ानूनों की ज़रूरत है

-द वायर, सूचना का अधिकार (आरटीआई) लंबे समय में देश में भ्रष्ट यथास्थिति को उजागर करने का एक जरिया बना हुआ है. ऐसी ही एक घटना हाल ही में राजस्थान में हुई. किसान और आरटीआई कार्यकर्ता अमराराम गोदारा का बाड़मेर से 21 दिसंबर को सफेद रंग की स्कॉर्पियो में अपहरण कर लिया गया था. उन्हें बेरहमी से पीटा गया और लगभग मरणासन्न अवस्था में उनके घर के पास फेंक दिया गया. उन्हें कई...

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उत्तर प्रदेश की एनकाउंटर संस्कृति और न्यायेतर हत्याएं

-न्यूजलॉन्ड्री,  न्याय की पूरी प्रक्रिया से गुजरे बिना, केवल पुलिस द्वारा होने वाले एनकाउंटर, गैर-न्यायिक या न्यायेतर हत्याएं कही जाती हैं. भारत में एनकाउंटर कोई हाल के वर्षों की घटनाएं नहीं हैं. पुलिस फायरिंग या अदालत ले जाते समय या किसी और परिस्थिति में पुलिस के हाथों ऐसी हत्याएं होती रही हैं. जिन्हें बाद में एनकाउंटर कहा गया. हालांकि पहले पुलिस फायरिंग से होने वाली ज्यादातर मौतें “अशांत” या संघर्षरत, मसलन...

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