अगर गोमांस (बीफ) के बढ़ते इस्तेमाल को पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो इतना विवाद न हो। गहराई से देखा जाए तो आज जलवायु परितर्वन, वैश्विक तापवृद्धि, भुखमरी, नई-नई बीमारियां प्रत्यक्ष रूप से मांसाहार के बढ़ते चलन से जुड़ी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) के मुताबिक एक मांस-बर्गर तैयार करने में तीन किलोग्राम कार्बन उत्सर्जित होता है। ऐसे में धरती की रक्षा के लिए मांस की बढ़ती...
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अब हिमाचल में सस्ती ही बेचनी होंगी सैकड़ों दवाएं
हिमाचल में फार्मा कंपनियों और दवा विक्रेताओं को महंगी दवाएं बेचने का रास्ता बंद हो गया है। इसके लिए फार्मा कंपनियों को आपत्तियां दर्ज करवाने को दी गई मोहलत खत्म हो गई है। केंद्र सरकार की नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) अब इन फार्मा कंपनियों की सुनवाई नहीं करेगी। इसके साथ हिमाचल में सैकड़ों दवाओं को हर हाल में सस्ते दाम पर बेचना होगा। एनपीपीए ने 338 दवाओं के रेट...
More »अंगदान और सामाजिक पूर्वग्रह- सुभाष गताडे
जनसत्ता 20 अक्टुबर, 2012: दिल्ली के एक अग्रणी अस्पताल में पिछले दिनों एक अलग किस्म के सम्मान समारोह का आयोजन हुआ। महज सत्रह साल की उम्र में दुर्घटना की शिकार हुई पायल (बदला हुआ नाम)- जिसे डॉक्टरों ने ब्रेन-डेड घोषित किया था उसके माता-पिता इस समारोह के केंद्र में थे, जिनके बेहद कठिन निर्णय से तीन लोगों की जिंदगी बची और दो लोगों की दृष्टि वापस लौटी। निश्चय ही उनके लिए...
More »पांव पसारतीं गैर-संचारी बीमारियां
नई दिल्ली [अरविंद जयतिलक]। पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा लोगों के स्वस्थ जीवन शैली में सुधार लाने के लिए एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। इस समझौते का मकसद गैर संचारी रोगों के जोखिम को कम करना है। गौरतलब है कि संपूर्ण विश्व में गैर संचारी रोगों का प्रभाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को मानें तो...
More »सवाल सेहत का
खास बात • सिर्फ 10 फीसदी भारतीयों के पास हेल्थ इंश्योरेन्स है और यह बीमा भी उनकी सेहत की जरुरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है। *** • अस्पताल में भर्ती भारतीय को अपनी सालाना आमदनी का 58 फीसदी इस मद में व्यय करना पड़ता है।*** • तकरीबन 25 फीसदी भारतीय सिर्फ अस्पताली खर्चे के कारण गरीबी रेखा से नीचे हैं। *** • सेहत के मद में होने वाले खर्चे का सवाल बड़ा चिन्ताजनक है। सालाना 10 करोड़ लोग...
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