बीते साल 16 हजार करोड़ की बिक्री पर देश की इ-रिटेल कंपनियों ने 8 हजार करोड़ का घाटा खाया. 100 रुपये का माल बेचा, तो 50 रुपये का घाटा खाया. इस घाटे का एक कारण था कि स्नैपडील, फ्लिपकार्ट तथा अमेजन जैसी कंपनियों द्वारा भारी डिस्काउंट दिये जा रहे थे. इनकी रणनीति थी कि डिस्काउंट देकर एक बार खरीदार बना लेंगे, तो वह बार-बार उन्हीं से माल खरीदेगा. डिस्काउंट का...
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काला या गोरा, धन तो आया-- अनिल रघुराज
कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. इसी तरह अपने यहां केंद्र सरकार की असली चाल-ढाल पहले दो-ढाई साल में ही दिख जाती है. बाद का आधा कार्यकाल तो अगले चुनावों का माहौल बनाने में चला जाता है. नरेंद्र मोदी सरकार के साथ तो यह भी दिक्कत है कि कार्यकाल के तीसरे साल में उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे अहम राज्यों के विधानसभा चुनाव होने...
More »कहां चले गये रोजगार?- डॉ भरत झुनझुनवाला
राज्यों में चल रहे चुनावों में भाजपा ने रोजगार के नाम पर वोट मांगे हैं. रोजगार सृजन के दो उपाय हैं. एक उपाय है कि बड़े उद्योगों पर टैक्स लगा कर छोटे उद्योगों को संरक्षण दिया जाये. छोटे उद्योगों में रोजगार ज्यादा उत्पन्न होते हैं. दूसरा उपाय है कि बड़े उद्योगों को पहले छोटे उद्योगों को नष्ट करने दिया जाये. इसके बाद मनरेगा जैसी योजनाओं से रोजगार उत्पन्न किया जाये....
More »रोजगार सृजन की नीति- डा भरत झुनझुनवाला
वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, वर्ष 2009 से 2012 में प्रति वर्ष संगठित क्षेत्र में मात्र 5 लाख रोजगार का सृजन हुआ है. हमारे श्रम बाजार में प्रति वर्ष एक करोड़ युवा प्रवेश कर रहे हैं, पुराना बैकलॉग कम से कम 6 करोड़ का है. क्या कारण है कि हम केवल 5 लाख रोजगार प्रति वर्ष सृजित कर रहे हैं? कारण है कि कंपनियों द्वारा मशीनों का...
More »कराहते करघे अब करुण कहानी भर हैं-- अमितांशु पाठक
अभी कुछ ही दिन हुए, जब वाराणसी में फाकेहाली से हताश एक बुनकर दंपति ने अपनी तीन बच्चियों की हत्या कर दी। पर विदर्भ के किसानों की आत्महत्या की तरह बनारस के बुनकरों की आर्थिक तंगी, बेकारी, गरीबी और कुपोषण को मीडिया में सुर्खियां नहीं मिल सकीं। इसलिए दुनिया भर में फैले बनारसी साड़ियों के शौकीन नहीं जानते कि यहां अनेक बुनकर परिवारों को दो जून का भरपेट भोजन और...
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