डाउन टू अर्थ, 20 दिसम्बर रबी सीजन की बुवाई का समय लगभग बीतता जा रहा है, लेकिन अभी भी पिछले साल के मुकाबले लगभग 30 लाख हेक्टेयर में बुआई नहीं हो पाई है। खासकर गेहूं और दलहन की बुआई काफी पिछड़ी हुई है। 15 दिसंबर 2023 को समाप्त सप्ताह तक के आंकड़े बताते हैं कि देश में रबी सीजन की 557.26 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस...
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बिगड़ रही खेतों की सेहत, हर साल उत्पादन को हो रहा प्रति हेक्टेयर 3,654 रुपए का नुकसान
डाउन टू अर्थ,11 दिसम्बर भारत में भूमि गुणवत्ता में आती गिरावट से कृषि उत्पादकता को हर वर्ष औसतन 3,654 रुपए प्रति हेक्टेयर का नुकसान हो रहा है। बता दें कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के शोधकर्ताओं द्वारा नुकसान की यह गणना 2011-12 की कीमतों के आधार पर की गई है। वहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि भू-क्षरण में एक फीसदी की वृद्धि के चलते कृषि उत्पादकता को होने...
More »छला महसूस कर रहे हैं बीटी कपास अपनाने वाले किसान
डाउन टू अर्थ,11 दिसम्बर राजस्थान में श्री गंगानगर जिले के 23 एमएल गांव के 40 वर्षीय शमशेर सिंह की दिनचर्या 25 सितंबर 2023 को आम दिनों की तरह ही थी। उन्होंने दोपहर 3.30 बजे सब्जी रोटी खाई, फिर एक झपकी ली। उसके बाद उठकर चाय पी। इस वक्त तक उनकी पत्नी जसविंदर कौर, उनके 17 वर्षीय बेटा जसविंदर और 11 व 14 साल की बेटियों जसप्रीत और पुष्पा कौर ने उनके...
More »खेती पर आपदाओं की गाज से किसानों पर सालाना पड़ रही है 10.2 लाख करोड़ रुपए की मार
डाउन टू अर्थ, 01 दिसम्बर खेती-किसानी आसान नहीं और ऐसे में जब साल दर साल आपदाओं का जोखिम बढ़ रहा है तो इसे करना महंगा सौदा बनता जा रहा है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक इन आपदाएं के चलते दुनिया भर के किसानों पर हर साल 10.2 लाख करोड़ रुपए (12,300 करोड़ डॉलर) से ज्यादा की मार पड़ रही है। जो वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र...
More »हर साल वातावरण में प्रवेश कर रही 200 करोड़ टन धूल और रेत, चौथाई के लिए जिम्मेवार इंसानी गतिविधियां
डाउन टू अर्थ, 17 नवम्बर हवा में मौजूद जिस धूल और रेत को हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, वो अपने आप में एक बड़ी समस्या बन चुकी है। यूएनसीसीडी रिपोर्ट से पता चला है कि हर साल 200 करोड़ टन धूल और रेत हमारे वातावरण में प्रवेश कर रही है। तादाद में यह कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस धूल और रेत...
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