मुजफ्फरपुर : आइआइएम, लखनऊ से पढ़ाई और इंफोसिस व जेडएस जैसी नामी कंपनियों में नौकरी, जिसमें हर माह वेतन के रूप में लाखों का पैकेज, लेकिन ये सब छोड़ मधुबनी की बेटी और मुजफ्फरपुर की बहू गरिमा विशाल ने बच्चों को पढ़ा कर समाज को बदलने का रास्ता चुना. उन्होंने डेजाऊ नाम से बच्चों का स्कूल खोला है, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों पर विशेष जोर दिया...
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बहुत दुश्वारियां हैं बच्चों के स्कूल की राह में-- पंकज चतुर्वेदी
बीते कुछ साल के दौरान आम आदमी शिक्षा के प्रति जागरूक हुआ है, स्कूलों में बच्चों का पंजीकरण बढ़ा है। साथ ही स्कूल में ब्लैक बोर्ड, शौचालय, बिजली, पुस्तकालय जैसे मसलों से लोगों के सरोकार बढ़े हैं। लेकिन जो सबसे गंभीर मसला है कि बच्चे स्कूल तक सुरक्षित कैसे पहुंचें, इस पर न तो सरकारी और न ही सामाजिक स्तर पर कोई विचार हो रहा है। आए दिन देश भर...
More »विकास की परिभाषा में बच्चे कहां!-- अनुज लुगुन
हमारा समाज एक ऐसी दिशा की ओर बेलगाम अग्रसर होता जा रहा है, जहां सब कुछ या तो बहुसंख्यक के लिए ही हो रहा है, या आवाज उठा सकनेवालों के लिए ही हिस्सेदारी बच रही है. जो मूक हैं, या मासूम हैं, उनके लिए कुछ भी नहीं बच रहा है. आज प्रकृति-जीव और बच्चे सामूहिक संहार के शिकार हो रहे हैं, क्योंकि वे अपनी भाषा मनुष्यों को समझा नहीं सकते....
More »कोरबा के स्कूल में केवल एक छात्र को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक
कोरबा, नईदुनिया न्यूज। एक सरकारी प्राथमिक शाला जहां केवल एक छात्र है और उसे पढ़ाने के लिए रोज दो शिक्षक आते हैं। इसके अलावा दो अन्य कर्मचारी भी हैं। एक बच्चे के लिए 4 कर्मचारियों का स्टापᆬ काम कर रहा। पिछले चार साल से लगातार बच्चों की संख्या घटने के बाद यह नौबत आई है। लापरवाही की हद तो यह है कि वर्ष 2014-15 के दौरान शिक्षा विभाग ने इस स्कूल...
More »डोंगी से नदी पार कर पढ़ाई करने की मजबूरी
अंबिकापुर। बलरामपुर जिले के राजपुर विकासखंड के धंधापुर में महान नदी पर बने पुल के बह जाने के बाद ग्रामीणों के साथ स्कूली बच्चे भी चौतरफा परेशानी से घिर गए हैं। प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थित बोट अथवा नाव की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण जरूरत को देखते हुए गांव वालों ने लकड़ी की डोंगी को तैयार किया है। इसी डोंगी से हर रोज ग्रामीणों के साथ दर्जनों स्कूल बच्चे जान...
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