दुनिया की बड़ी चर्चाओं में पानी और पर्यावरण दो प्रमुख मुद्दे हैं। वैसे पानी भी पर्यावरण का ही हिस्सा है पर अब यह सालभर चर्चाओं में रहता है। गर्मी आते ही देश-दुनिया में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच जाती है और इसके जाते ही पानी-पानी से त्राहि मच जाती है। इस बार देश के 11 राज्यों के 33 करोड़ लोगों ने सीधे पानी की मार झेली है। इससे पहले जलसंकट...
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शिक्षा भी, मजदूरी भी-- कृष्ण कुमार
कहते हैं, शब्दों की अपनी दुनिया होती है। कवि और कहानीकार शब्दों के जरिए हमें किसी और दुनिया में ले जाते हैं। फिर कानून रचने वाले क्यों पीछे रहें? नए बाल मजदूरी कानून का प्रयास कुछ ऐसा ही है। यह कानून कहता है कि छह से चौदह वर्ष के बच्चे स्कूल से घर लौट कर किसी ‘पारिवारिक उद्यम' में हाथ बंटाएं तो इसे मजदूरी नहीं माना जाएगा। इस सुघड़ तर्क...
More »आर्थिक सुधारों के 25 वर्ष-- डा.भरत झुनझुनवाला
पच्चीस वर्ष पूर्व इन्हीं दिनों वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा बजट प्रस्तुत कर आर्थिक सुधारों को प्रारंभ किया गया था. इन सुधारों का एक प्रमुख आयाम दुनिया के देशों के बीच खुला व्यापार था. 1995 में हमने डब्ल्यूटीओ संधि पर हस्ताक्षर किये थे. इस संधि के अंर्तगत हमने स्वीकार किया था कि निर्धारित सीमा से अधिक आयात कर आरोपित नहीं किये जायेंगे. इससे विश्व व्यापार को गति मिली. लेकिन कई...
More »ब्याज व्यवहारिक दर जरूरी
अथक प्रयासों के बावजूद बड़े कारोबारी निजी निवेश करने में रुचि नहीं ले रहे हैं। उधर विदेशी संस्थागत निवेशक भारत में निवेश को लेकर उत्साहित नहीं हैं। ऐसे में वित्तमंत्री ने बैंकों और दूसरी वित्तीय संस्थाओं द्वारा जमा पर दिए जा रहे ज्यादा ब्याज पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि जमा पर अधिक ब्याज देने से कर्ज देने की लागत बढ़ जाती है। गौरतलब है कि ब्याज...
More »सब्सिडी : कल्याण या राजनीति? मुफ्तखोरी के दुष्चक्र में फंसता देश
ज्यादातर देशों में एक ओर जहां राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए मुफ्तखोरी को हथियार बनाती हैं, वहीं इसी दुनिया में स्विटजरलैंड जैसा भी एक देश है, जहां की जनता ने सरकार की इस पेशकश को ठुकरा दिया. दूसरी तरफ भारत में देखें तो राजनीतिक पार्टियां और सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देनेवाली नीतियों को प्रश्रय देती रहती हैं भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सब्सिडी एक जरूरी...
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