संयुक्त परिवार की यूं तो तमाम खूबियां-खामियां होती हैं... पर उसकी एक सबसे बड़ी खूबी होती है- परिवार का आर्थिक संबल। परिवार के आर्थिक रूप से सबसे कमजोर सदस्य को भी इस बात का पूरा भरोसा रहता है कि संयुक्त परिवार की वजह से उसकी पत्नी या बच्चों को कभी भी दो जून की रोटी का संकट नहीं आएगा। उनके महंगे शौक भले ही पूरे न हों, लेकिन मूलभूत जरूरतें पूरी...
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असंभव की सीमाएं तोड़ीं और आज बन गईं रोल माडल-- माधव शर्मा
जयपुर. गांव-देहात से निकली ये महिलाएं आज सामाजिक-आर्थिक बदलाव की कहानियां गढ़ रही हैं। मेहनत और हौसले से इन्होंने न केवल सामाजिक बंधन और रूढ़ियों को ध्वस्त किया बल्कि अपनी आर्थिक तरक्की की राह भी प्रशस्त की। आइये, आपको बदलाव के कुछ ऐसे किरदारों से मिलाते हैं जिन्होंने खुद की ही नहीं बल्कि अपने आस-पास की भी तस्वीर बदल दी। 100-200 रुपए से हुई शुरुआत आज 4-5 लाख रुपए तक...
More »मुद्रा बैंक :समग्र विकास का अंग--- अविनाश राय
हमारे देश में लाखों करोड़ों ऐसे सामान्य नागरिक हैं जो छोटे-छोटे कारोबार और उद्योग चलाते हैं परन्तु वे अक्सर औपचारिक और संगठनात्मक ऋण व्यवस्था के दायरे से बाहर ही रहते हैं, जबकि समग्र अर्थव्यवस्था में सामूहिक रूप में उनका सहयोग बहुत विशाल हो जाता है। यह मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का। इस संदेश के माध्यम से उन्होंने उन छोटे-छोटे व्यवसाय, दुकान चलाने वालों और यहां तक कि रेहड़ी-पटरी...
More »प्रदेश में किसान बेहाल, 42 सौ करोड़ रुपए की फसल हुई बर्बाद
भोपाल। प्रदेश में लगातार चौथे साल भी किसान मानसून की मार और कीड़े लगने सेे 17 लाख किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं। इससे 4 हजार 194 करोड़ रुपए की फसल के नुकसान का आंकलन लगाया गया है। कई जिलों में सोयाबीन, मूंग और उड़द की खड़ी फसलें खेतों में बखरनी पड़ी हैं।पूरे प्रदेश में सूखा प्रभावित 14 जिले के 13 हजार 25 गांवों में 17 लाख 35 हजार हेक्टेयर...
More »विकास की नीतियां बदलने का वक्त - यशवंत सिन्हा
भारत में घोषित आर्थिक सुधारों का इतिहास 24 साल पुराना है, लेकिन इन 24 वर्षों में भी सुधारों को लेकर जो विवाद हैं, वे अभी तक समाप्त नहीं हुए हैं। आज भी भूमि अधिग्रहण, श्रम कानून, जीएसटी, डायरेक्ट टैक्स (जैसे गार अथवा पिछली तिथि से लागू होने वाले कर) विदेशी पूंजी निवेश इत्यादि अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर आज भी कोई सहमति नहीं बन पाई है। जब डॉ. मनमोहन...
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