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क्या सोचा क्या पाया

जिन सपनों को लेकर एक दशक पहले उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था उनमें से कितने सपने आंखों से उतरकर जमीन पर चल पाए हैं?  नौ नवंबर को उत्तराखंड राज्य दस साल का हो गया. दस साल की उम्र किसी राज्य का भविष्य तय करने के लिए काफी नहीं होती, पर ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’ वाली कहावत के हिसाब से देखा जाए तो उस भविष्य का अंदाजा लगाने के...

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जैविक का व्यापार, एनजीओ और सरकार --- योगेश दीवान

  कितना आश्चर्यजनक है कि अचानक मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री पानी बाबा की तर्ज पर ''जैविक बाबा'' हो जाते हैं और मुख्यमंत्री जैविक प्रदेश घोषित करने के लिये धन्यवाद के पात्र. ये वही मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री हैं, जो कुछ दिन पहले तक और अभी भी प्रदेश की खेतिहर जमीन को बड़ी ही सामंती उदारता से बड़ी-बड़ी कंपनियों को बांटते हुए फोटो खिंचा रहे थे. इसे परंपरागत जैविक के एकदम खिलाफ...

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नर्मदा का नाद -- मेधा पाटकर

विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक नर्मदा घाटी आज भी समृद्ध प्रकृति के लिए मशहूर है. घाटी में नदी किनारे पीढ़ियों से बसे हुए आदिवासी तथा किसान, मजदूर, मछुआरे, कुम्हार और कारीगर समाज प्राकृतिक संसाधनों के साथ मेहनत पर जीते आए हैं. इन्हीं पर सरदार सरोवर के साथ 30 बड़े बांधों के जरिये हो रहे आक्रमण के खिलाफ शुरू हुआ जन संगठन नर्मदा बचाओ आंदोलन के रूप में पिछले 25...

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गरजे किसान, भोपाल परेशान

भोपाल. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ ने सोमवार सुबह अपनी ही सरकार को परेशानी में डाल दिया। प्रदेश के विभिन्न अंचलों से यहां पहुंचे किसानों ने राजधानी की चारों दिशाओं की सीमा को घेर लिया। ट्रेक्टर ट्राली में लगभग एक पखवाड़े तक का राशन-पानी और ओढ़ने-बिछाने का सामान लेकर आए किसानों ने जगह-जगह सड़कों पर जाम लगा दिया। इससे पूरे शहर का आवागमन छिन्न-भिन्न हो गया, लेकिन सरकार...

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बा-सफा कोई नहीं : गोपालकृष्ण गांधी

‘यह सब राजनीति है’ या ‘राजनीतिज्ञों से आखिर और क्या उम्मीद कर सकते हैं।’ इस किस्म की बातें हम अक्सर सुनते हैं। खुद कहते भी हैं। ‘राजनीति’ और ‘राजनीतिज्ञ’ शब्द आज संकट में हैं। यह संकट खुद उन्होंने पैदा किया है। कुछ अपवाद भी हैं, ऐसे राजनीतिज्ञों के जो न तो परेशानी में हैं और न विवाद में। इसके लिए हम भगवान के शुक्रगुजार हैं। पर ऐसे अपवाद बहुत कम हैं।...

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