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'आत्महत्या के विरुद्ध' 2016-- रविभूषण

आत्महत्या का संबंध असहिष्णुता, भय, आतंक और असुरक्षा आदि से उत्पन्न उस अकेलेपन से है, जिसका एक सामाजिक संदर्भ है. आत्महत्या अपने व्यापक अर्थ में हत्या है. आत्महत्या को मनोविज्ञान से जोड़ कर अधिक देखा जाता रहा है, जबकि इसका एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है. रघुवीर सहाय ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता 'आत्महत्या के विरुद्ध' (मई 1967 की 'कल्पना' में प्रकाशित) में 'जनता की छाती' पर चढ़े 'मंत्री मुसद्दीलाल' का एक चित्र...

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इस तरह न याद करें महात्मा गांधी को-- रामचंद्र गुहा

महात्मा गांधी की मृत्यु के तुरंत बाद उनकी स्मृति को बनाये रखने, उनके कामों को सम्मान देने की अनेक खबरें कई समाचार पत्रों में कई दिनों तक छपती रही थीं. ऐसी कुछ खबरें मैंने दिल्ली में राष्ट्रीय अभिलेखागार में अध्ययन करते हुए पढ़ी थीं. जैसे इस खबर को ही लीजिए- सन् 1948 में मार्च महीने की तीन तारीख को ‘न्यू उड़ीसा' नाम के अखबार में लिखा गया था कि बिहार...

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अहम साल रहा 2015, घातक पर्यावरणीय बदलावों के लिहाज से

बीता वर्ष 2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है. हालांकि, पिछले करीब एक दशक में कई वर्ष ऐसे रहे हैं, जो उस समय तक सबसे गर्म साल के रूप में आंके गये, लेकिन वर्ष 2015 को इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि क्लाइमेट चेंज के लिहाज से विशेषज्ञों ने इसे 'टिपिंग प्वाइंट' करार दिया है. क्या इंगित करता है यह टिपिंग प्वाइंट, क्यों जतायी जा रही...

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स्त्री मात्र देह नहीं- ऋतु सारस्वत

अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोते-पिराते मैंने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी कि यह असीम संतुष्टि के साथ न जाने कितने रिश्तों को जोड़ देगी। ऐसे रिश्ते, जिनसे मानसिक और भावनात्मक मुलाकात तो पत्रों और फोन के माध्यम से महीने में एकाध बार हो जाती, लेकिन रूबरू कभी नहीं हुई। इन्हीं में से एक उज्जैन के ‘शरद' भाई साहब हैं। ‘भाई साहब' का संबोधन जहां उनके आत्मसम्मान को...

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उपलब्धियां बेमिसाल, फिर भी बाकी हैं सवाल- राजकुमार सिंह

आज हमारा गणतंत्र 66 साल का हो गया। लंबी गुलामी के बाद संघर्ष से मिली आजादी में गणतंत्र का यह सफर आसान हरगिज नहीं रहा। आजादी के साथ ही आयी विभाजन की विभीषिका से उबर कर भारत ने गणतंत्र की राह सोच-समझ कर ही चुनी थी। फिर भी अगर सफर आसान और परिणाम वांछित नहीं रहे, तो कारण विरासत में मिली जटिलताओं के साथ ही नीति-निर्धारण में दोष का भी...

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