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अरविंद पनगढिया जैसे लोगों को हटायें पीएम नरेंद्र मोदी, देसी समझ वाले लोगों की सुनें : गोविंदाचार्

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक से होते हुए भारतीय जनता पार्टी में महासचिव का पद संभाल चुके केएन गोविंदाचार्य पिछले कई सालों से पार्टी से छुट्टी पर चल रहे हैं. वह राजनीति की मुख्यधारा से भले अलग हो गये हों, पर उनकी छवि देसी चिंतक -विचारक की है. उनके पास भारत को देखने-समझने का अपना ‘स्वदेशी' नजरिया है. हाल ही में गोविंदाचार्य से बातचीत की प्रभात खबर डॉट कॉम के...

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कुपोषण-- यह है गुजरात का सच

भारत सरकार स्वास्थ्य पर कई अभियान चला रही है लेकिन कुपोषण के राज्यवार आंकडे़ जारी नहीं हुए। सरकार ने यूनिसेफ के साथ महिलाओं, बच्चों पर देश भर में ‘रैपिड सर्वे ऑफ चिल्ड्रन' नाम से बड़ा सर्वेक्षण कराया था, जो अक्टूबर 2014 में प्रकाशित होना था। आंकड़े नहीं होने के कारण यूनिसेफ विकास योजनाओं को अमल में नहीं ला पा रही है। सरकार इस पर मौन है, जबकि बीबीसी को मिली...

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ड‌िजिटल इंडिया पर उठे सवाल, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

भले ही नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लांच डिजिटल लॉकर सुविधा के बारे में अभी लोगों तक ठीक तरीके से जानकारी न पहुंची हो लेकिन यह मामला कानूनी विवाद में जरूर पड़ गया है। इस सुविधा के लांच होने के दो दिन बाद ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। आरटीआई कार्यकर्ता सुधीर यादव में शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर डिजिटल लॉकर सुविधा को आधार से लिंक किए...

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JK के किसानों का आधा कर्ज माफ करने की अधिसूचना जल्द

राज्य सरकार के बजट में की गई घोषणा के मुताबिक एक लाख रुपये तक के ऋण पर किसानों को 50 फीसदी छूट देने की अधिसूचना जल्द ही जारी कर दी जाएगी। अमर उजाला से बातचीत में डॉ. द्राबू ने कहा कि रियासत को विनाशकारी बाढ़ के दंश से उबारने में केंद्र सरकार भरपूर सहयोग कर रही है। बाढ़ पुनर्वास तथा प्रबंधन प्रोजेक्ट की इसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घोषणा कर सकते...

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न्यूनतम सरकार अधिकतम शोषण- के सी त्यागी

श्रमिकों के शोषण का लंबा इतिहास रहा है। इसके विरुद्ध श्रमिकों ने समय-समय पर आवाज उठाई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानून बने। मजदूर संगठित हुए, उन्हें अधिकार मिले, स्वतंत्रता मिली, सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ा। इसका असर हमने भारत में भी देखा। लेकिन नई औद्योगिक नीति और उदारीकरण का दौर परवान चढ़ने के साथ ही श्रमिक फिर शोषण का शिकार हुए। उनका सामाजिक दायरा घटा, अधिकार सिकुड़ते चले गए। इसी...

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