महुआ मांजी देश में एक साहित्यकार के रूप में जानी-पहचानी जाती हैं. इन्होंने अपनी लेखनी से न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी शोहरत हासिल की है. गत वर्ष नवंबर महीने में इन्हें राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष का पदभार सौंपा गया. पदभार ग्रहण करते ही इनकी सक्रियता नजर आने लगी. महिला हित की रक्षा के लिए इन्होंने कई स्तर पर प्रयास शुरू कर दिया. साथ ही इसके लिए इन्होंने...
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डूबते को तिनके का सहारा..
कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा होता है। यह कहावत “निजो गृह-निजो भूमि” कार्यक्रम के हितग्राही पश्चिम बंगाल के भूमिहीन परिवारों पर सटीक बैठती है। इंटरनेशनल फूड एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इंडिया स्टेट हंगर इंडेक्स(2008) में पश्चिम बंगाल में भुखमरी की दशा को खतरनाक करार दिया था। समस्या से निपटने के दूरगामी उपाय के रुप में पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य के भूमिहीन परिवारों को आवास और खेती-बाड़ी...
More »महिला सशक्तीकरण का माध्यम बना सोलर चरखा- पुष्यमित्र
पिछले दिनों 14वें वित्त आयोग की टीम झारखंड की वित्तीय जरूरतों का आकलन करने के लिए रांची आयी हुई थी. इस दौरान राज्य सरकार की ओर से उन्हें रांची से पिस्का नगड़ीइलाके का भ्रमण कराया गया जहां वे उन महिलाओं से मिले जो सोलर चरखा की मदद से सिल्क का धागा तैयार कर रही हैं और इस प्रयास के जरिये ये महिलाएं अपने परिवार और गांव में खुशहाली ला रही हैं. जब...
More »संविधान में गांव की परिभाषा भी नहीं- आर के नीरद
भारत के संविधान में गांव की कोई परिभाषा नहीं है. जब गांव ही नहीं है, तो ग्राम गणराज्य भी नहीं है. यह बड़ा विरोधाभास है. महात्मा गांधी गांव गणराज्य की बात करते थे. वे आजादी का असली अर्थ गांवों की समरसता, आत्मनिर्भरता और लोकतंत्र में जन भागीदारी को मानते थे. देश आजाद हुआ और गणतंत्र भारत के लिए अपना संविधान बना, लेकिन इसमें गांव की परिकल्पना शामिल नहीं हो सकी. सब ने...
More »मनरेगा पर ज्यादा सरकारी धन खर्च
मनरेगा देश की सबसे बड़ी योजना है, जिस पर केंद्र सरकार 40-42 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है. इसके मकसद के बारे में सभी जानते हैं. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) एक कानून है, जो शासन को इस बात के लिए बाध्य करता है कि वह किसी भी ग्रामीण परिवार के वैसे सदस्यों को एक साल में सौ दिन का रोजगार मुहैया कराये, जो 18 साल...
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