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पर्याप्त सरकारी मदद के जरिये ही पहुंच सकती हैं सभी तक स्वास्थ्य सेवाएं

भारत के विशाल और विविध भू-भागों में रहने वाली आबादी तक समुचित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती रही है. इसमें बड़ी कमी सरकारों की रही है, जो अपने कुल बजट का महज एक फीसदी तक हिस्सा ही सार्वजनिक स्वास्थ्य मद में खर्च करती रही है. स्वास्थ्य क्षेत्र के समूच परिदृश्य समेत इससे संबंधित अन्य पहलुओं को इंगित कर रहा है आज का वर्षारंभ ... अनंत कुमार एसोसिएट प्रोफेसर,...

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ढाई साल में ढाई गुणा बढ़ गया सरकारी बैंकों का एनपीए, ये कंपनियां हैं बड़ी कर्जदार

नयी दिल्ली : सरकार नए साल में बैंकिंग सुधारों के सिलसिले को जारी रख सकती है. इसके अलावा सरकार का इरादा एनपीए (गैर निष्पादित आस्तियों) के बोझ से दबे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी निवेश करने का भी है, जिससे ऋण की मांग को बढाया जा सके. फिलहाल ऋण की वृद्धि दर 25 साल के निचले स्तर पर चली गयी है. सरकार ने इस साल अक्तूबर में बैंकों में 2.11...

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चिकित्सा आयोग की चुनौतियां-- डा. ए के अरुण

नरेंद्र मोदी जी के केंद्र की सत्ता में आते ही देश की कई संस्थाओं में बदलाव की पहल शुरू हुई. सबसे पहले योजना आयोग को बदलकर 'नीति आयोग' कर दिया गया. अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया को नीति आयोग का पहला उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया. फिर पनगढ़िया के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन कर यह प्रक्रिया शुरू की गयी कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) और साथ-साथ आयुष की चिकित्सा...

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बचत पर बाजार की नजर-- राजू पांडेय

अब आम आदमी का धन क्या बैंकों में सुरक्षित नहीं रहेगा? एफआरडीआइ विधेयक की बाबत इस सवाल पर चर्चा जारी है। सामान्यतया बैंक और उसके जमाकर्ताओं के हित परस्पर विरोधी नहीं होते, पर जब उद्योगपतियों को दिए गए विशाल कर्जों की माफी के लिए ‘बेलआउट पैकेज' और इस कारण दिवालियेपन के कगार पर पहुंचे बैंकों को बचाने के लिए ‘बेल इन' का सहारा लिया जाता है तब बैंकों और जमाकर्ताओं...

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बीमार स्वास्थ्य तंत्र का निदान-- राजू पांडेय

विश्व स्वास्थ्य सूचकांक में भारत का स्थान 188 देशों में 143वां है। भारत स्वास्थ्य पर अपने जीडीपी का सिर्फ 1.4 प्रतिशत व्यय करता है। जबकि अमेरिका जीडीपी का 8.3 प्रतिशत, चीन 3.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका 4.2 प्रतिशत व्यय करता है। स्वास्थ्यमंत्री फरवरी 2015 में राज्यसभा में यह स्वीकारकर चुके हैं कि देश में चौबीस लाख नर्सों और चौदह लाख डॉक्टरों की कमी है। हम प्रतिवर्ष केवल साढ़े पांच हजार...

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