मई की एक तपती हुई दोपहर को मैं नई दिल्ली में योजना आयोग भवन के सामने एक विचित्र विरोध प्रदर्शन में सम्मिलित हुआ था। प्रदर्शनकारी तख्तियां लहरा रहे थे, जोशोखरोश से नारे लगा रहे थे, लेकिन साथ ही वे देश की शीर्ष योजना निर्मात्री संस्था के सदस्यों के लिए कुछ ‘भेंट’ भी लेकर आए थे। उनकी भेंट ठुकरा दी गईं और प्रदर्शनकारियों की भीड़ को पुलिस ने मामूली झड़प के बाद...
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मुद्दा: गरीब की नई परिभाषा
गरीबी: सभ्य समाज के इस सबसे बड़े अभिशाप को राष्ट्रपिता गांधी जी ने हिंसा का सबसे खराब रूप कहा। करेला उस पर नीम चढ़ा कि स्थिति यह कि गरीबों को 'गरीब' न मानना। हमारे हुक्मरानों ने गरीबों की नई परिभाषा गढ़ी है। अगर आप शहर में रहकर 32 रुपये और गांव में रहकर 26 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च कर रहे हैं तो आप गरीब नहीं है। खुद को गरीब मानते...
More »दलितों पर पुलिस गोलीबारी, मृतकों की संख्या सात हुई
परामाकुडी (तमिलनाडु): तमिलनाडु के इस जिले में पथराव पर उतारू भीड़ पर की गयी पुलिस गोलीबारी में घायल हुए दो और लोगों के अस्पताल में दम तोड़ने के बाद इस घटना में मरने वालों की संख्या सात तक पहुंच गयी है. दलितों के नेता जान पांडियन को गिरफ्तार करने के बाद फ़ैली हिंसा में शामिल लोगों पर पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी थी. पुलिस ने आज यह जानकारी दी. बीती रात...
More »आम के 700 पौधों को काट डाला
पीरपैंती : प्रखंड के सिवानपुर (रिफातपुर) व राज गांव अराजी पंचायत में आम के लगाये गये 700 पौधों को काट डाला गया. खेतों में लगे दो तीन साल पुराने पेड़ों को एक तरफ से काट कर खत्म कर दिया गया. पेड़ काटे जाने की घटना की जानकारी स्थानीय थाने में दी जाती है लेकिन इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. किसानों को पेड़ लगाने के बाद रखवाली के...
More »गोदान : किसान की शोकगाथा--- . गोपाल प्रधान
‘गोदान’ के प्रकाशन के 75 साल पूरे हो गए हैं लेकिन भारत का देहाती जीवन आज भी लगभग उन्हीं समस्याओं और चुनौतियों से घिरा दिखता है जिनका वर्णन मुंशी प्रेमचंद के इस कालजयी उपन्यास में हुआ है. गोपाल प्रधान का आलेख सन 1935 में लिखे होने के बावजूद प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' को पढ़ते हुए आज भी लगता है जैसे इसी समय के ग्रामीण जीवन की कथा सुन रहे हों....
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