सारे देश में चुनाव की तेज हलचल है और कई जगहों पर, कई व्यक्तियों की किस्मत उन मशीनों में बंद हो गई है,मशीनों में बंद हो गई है,जिन पर राजनीतिक दलों का भरोसा कम होता जा रहा है। वोट डाल कर मतदाताओं ने मुंह मोड़ लिया है। वे जानते हैं कि अब जब तक अगला चुनाव नहीं आता, इस लोकतंत्र से, इससे बनने वाली लोकसभा और उस लोकसभा में बैठने...
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अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस: खत्म हो सकेगी बाल मजदूरी?
नौ वर्ष की 'मिली' (बदला हुआ नाम) को भी दूसरे बच्चों की ही तरह रोज सुबह जल्दी उठना पड़ता है, और जल्दी-जल्दी तैयार होना पड़ता है। हालांकि अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह वह स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं होती, बल्कि काम पर जाने के लिए तैयार होती है। मिली एक घर में खुद से आधी उम्र की एक अन्य बच्ची की देखभाल का काम करती है। जिस उम्र में अधिकांश बच्चे...
More »विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता
चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...
More »गुजरात को पीछे छोड़कर तमिलनाडु बना नंबर 1
चुनावी माहौल में राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के हर दांव खेल रहे हैं। इसके तहत भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने हाल ही में विकास पुरुष की छवि को मजबूत करने के लिए यह दावा किया है कि उनके राज्य गुजरात में छोटे और मझोले उपक्रमों की संख्या 85 फीसदी की दर से बढ़ रही है। जबकि, बनारस में उनको चुनौती देने वाले आम आदमी पार्टी...
More »चुनाव के समय ही उनकी याद आती है- अनुराग दीक्षित
लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों को अचानक देश के मुसलमानों की याद आ गई है। हर दल खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने में जुटा है। कांग्रेस नए-पुराने 15 सूत्रीय कार्यक्रमों समेत अपनी तमाम योजनाएं गिना रही है। वैसे यूपीए शासनकाल में अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन और अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए छात्रवृत्ति जैसे अहम काम हुए भी हैं। हां, यह बात अलग है कि प्रधानमंत्री भी अल्पसंख्यक कल्याण...
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