उरई। बुंदेलखंड के बीहड़ में बसे गांवों के लोग भुखमरी के मुहाने पर खडे़ हैं। उरई जिले के नंदीगांव व रामपुरा ब्लाकों के दर्जनों गांवों के बाशिंदों के घरों में महीने में बमुश्किल 15 दिन ही चूल्हा जलता है और वह भी एक समय। ज्यादातर भूमिहीन और गरीबों के पास बीपीएल और अंत्योदय कार्ड तक नहीं हैं। पूरा भोजन ना मिलने से महिलाएं, पुरुष और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। दलित बाहुल्य गांवों की हालत...
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कहीं विलुप्त ना हो जाए आदिवासी संस्कृति
नई दिल्ली। अरविंद जयतिलक संयुक्त राष्ट्र संघ की द स्टेट आफ द वर्ल्ड्स इंडीजीनस पीपुल्स नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि मूलवंशी और आदिम जनजातिया पूरे विश्व में अपनी संपदा, संसाधन और जमीन से वंचित व विस्थापित होकर विलुप्त होने के कगार पर हैं। रिपोर्ट में भारत के झारखंड राज्य की चर्चा करते हुए कहा गया है कि यहा चल रहे खनन कार्य के कारण विस्थापित हुए संथाल जनजाति के हजारों परिवारों को आज...
More »भुखमरी कैसे खत्म हो - सचिन कुमार जैन
भुखमरी आज के समाज की एक सच्चाई है परन्तु मध्यप्रदेश के सहरिया आदिवासियों के लिये यह सच्चाई एक मिथक से पैदा हुई, जिन्दगी का अंग बनी और आज भी उनके साथ-साथ चलती है भूख. अफसोस इस बात का है कि सरकार अब जी जान से कोशिश में लगी हुई है कि भूखों की संख्या कम हो. वास्तविकता में भले इसके लिये प्रयास न किये जायें लेकिन कागज में तो सरकार...
More »आदिवासियों का विश्वस्तर पर जनसंहार- यूएन रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र संघ की द स्टेट ऑव द वर्ल्डस् इंडीजीनस पीपल्स नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि मूलवंशी और आदिम जनजातियां पूरे विश्व में अपनी संपदा-संसाधन और जमीन से वंचित और विस्थापित होकर विलुप्त होने के कगार पर हैं। रिपोर्ट में भारत के एक सूबे झारखंड में चल रहे खनन कार्य के कारण विस्थापित हुए संथाल जनजाति के हजारो परिवारों का हवाला देते हुए कहा गया है कि उन्हें समुचित मुआवजा तक हासिल नहीं हो...
More »चिराग तले अंधेरा....
अधिकारों की हिफाजत में कानून बनाना एक बात है और सच्चाई की जमीन पर उतार पाना एकदम दूसरी बात।देश की राजधानी दिल्ली को ही देखें। एक तरफ तो शिक्षा के बुनियादी अधिकार को साकार करने के लिए कानून अमल में आ गया है दूसरी तऱफ देश की राजधानी दिल्ली में में कामगार तबके की आबादी वाले कॉलोनियों में बच्चे नियमित पढ़ाई लिखाई से वंचित हो रहे हैं। दिल्ली में रोजमर्रा की...
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