कोटा. शहर में बाढ़ आ जाए अथवा बैराज से अधिक मात्रा में पानी छोड़ना पड़े तो चंबल की डाउन स्ट्रीम में बने 15 हजार मकानों में बसे करीब 75 हजार लोगों के सामने संकट आ जाएगा। जब यह मकान बने तब किसी ने आपत्ति नहीं जताई लेकिन, 4 साल पहले बनी जल प्लावन की स्थिति के बाद प्रशासन सचेत हुआ, लेकिन अभी तक यह चेतना केवल सर्वे करवाने तक ही...
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बिहार को मालूम नहीं उसके यहां कितने हैं बेघर
नई दिल्ली [माला दीक्षित]। बिहार सरकार ने मौसम की मार और भुखमरी से बचाने के लिए शहरी बेघरों को आश्रय और भोजन देने से हाथ खड़े कर दिए हैं। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट का था, लेकिन राज्य सरकार को यही नहीं मालूम कि उसके शहरों में कितने लोग बेघर हैं? कोर्ट के नोटिस के जवाब में राज्य सरकार ने आर्थिक और प्रबंधकीय दिक्कतें बताते हुए ऐसा करने में असमर्थता जताई है और सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार...
More »रैनबसेरों की व्यवस्था पर राज्यों को मोहलत
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बेघर लोगों को रैनबसेरा मुहैया कराने के प्रावधान पर जवाब देने के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दो हफ्तों का समय और दिया है और ऐसा नहीं करने पर अधिकारियों को अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की पीठ ने कुछ राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा पीठ के 10 फरवरी के निर्देश के बावजूद इस मुद्दे पर जवाब नहीं...
More »सरकारी कागजों में स्लम का अकाल
अगर कोई पूछे कि मुंबई महानगर में झोपड़ बस्तियों को हटाने की दिशा में जो काम हो रहा है, उसका क्या असर पड़ा है तो इस सवाल का एक जवाब ये भी हो सकता है- आने वाले दिनों में झोपड़ बस्तियों की संख्या बढ़ सकती है. मुंबई महानगर का कानून है कि जो बस्ती लोगों के रहने लायक नहीं है, उसे स्लम घोषित किया जाए और वहां बस्ती सुधार की योजनाओं...
More »मौत व कलंक के भय पर सेवा भारी
रांची [नीरज अंबष्ठ]। एड्स! जिसकी परिणति कलंक व निश्चित मौत। पूरे परिवार को बर्बाद कर देने वाली बीमारी। जाने-अनजाने में जिसे हो जाए, उसके अपने ही उससे दूर भागने लगते हैं। कहीं छूने-सटने से उसे भी.। बेघर तक किए जाते हैं। लेकिन एड्स पीड़ितों की सेवा और उनके लिए कुछ करने की उमंग को क्या कहेंगे? सिस्टर प्रमिला कुजूर को न तो मौत से डर है, और न ही कलंक से। एड्स पीड़ितों की सेवा की...
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