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प्रधान नहीं जानतीं पंचायतीराज मंत्री कौन!- सुरेश कासलीवाल की रिपोर्ट

अजमेर.जिले की अरांई पंचायत समिति की प्रधान पारसी देवी, जहाजपुर प्रधान सीता देवी गुर्जर व आसींद की प्रधान देबी भील अपने अधिकारों के बारे में तो अनजान हैं ही, उन्हें पंचायतीराज विभाग के मुखिया पंचायतीराज मंत्री का नाम तक मालूम नहीं है? एक को इसके बारे में जानकारी नहीं। दूसरी बोलती है, पूरा नाम पता नहीं पर शायद कोई मालवीय हैं और तीसरी प्रधान ने पंचायतीराज मंत्री का नाम बताया, राजेंद्र सिंह राठौड़ । ...

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न पाठशाला, न स्वच्छ पानी, ये है मजदूरों की कहानी

राजेश छौंकर, नूंह : मई दिवस को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। अपनी मागों को लेकर आए दिन प्रदर्शन करते मजदूरों की स्थिति मेवात में अच्छी नहीं कही जा सकती। इनके लिए न स्वच्छ पानी की व्यवस्था है न ही इनके बच्चों के लिए पाठाशाला की। नहीं है शौचालय व पेयजल व्यवस्था मेवात में 90 फीसदी भट्ठों पर मजदूरों के लिए शौचालय आदि की व्यवस्था नहीं है। इससे महिलाओं को...

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ग्रामीण महिलाओं ने जाना मनरेगा का महत्व

केन्द्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार क्षेत्रीय निदेशालय जमशेदपुर की ओर से हलुदबनी में चल रहा दो दिवसीय मनरेगा शिविर संपन्न हुआ। इस अवसर पर क्षेत्र की महिलाओं को मनरेगा के महत्व के बारे में बताया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे जिला परिषद सदस्य राजकुमार सिंह ने कहा कि मनरेगा एक लोक कल्याणकारी योजना है। इस योजना के आने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले...

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बकरी चराने, सूखी लकड़ियां बटोरने पर मुकदमा!- अंबरीश

लखनऊ, 11 दिसंबर। कैमूर क्षेत्र की महिलाएं पंद्रह हजार से ज्यादा फर्जी मुकदमों में फंसी हैं। इनमें से ज्यादातर मुकदमे मिर्जापुर, चंदौली और सोनभद्र जिले की दलित और आदिवासी महिलाओं पर हैं। अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर सोनभद्र में सैकड़ों महिलाओं ने प्रदर्शन कर चेतावनी दी कि अगर एक महीने में इन मुकदमों को वापस नहीं लिया गया तो जनवरी के अंत में ‘जेल भरो आंदोलन’ शुरू किया जाएगा।...

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बीड़ी पत्ते में धुआं-धुआं ज़िंदगी -- सारदा लहांगीर

“छो...छोको भूंजी लोक पतर तुड़ले लागसी भोक....” ( हम लोग गरीब भुंजिया आदिवासी, पत्ता तोड़ते हुए भूख लगती है ) नुआपाडा जिले के सीनापाली गांव में रहने वाली 55 वर्षीय पहनी मांझी को जंगल में तेदूपत्ता तोड़ते हुए जब भूख लगती है तो वो अपना ध्यान बंटाने के लिए यहीं उड़ीया लोकगीत गुनगुनाती हैं. तेंदूपत्ता अप्रैल और मई महीने की चिलचिलाती धूप में जब हम अपने वातानुकुलित कमरे में बैठे आराम फरमा...

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