देश में हाल के दिनों में गणतंत्र दिवस को लेकर लोगों के मन में एक अलग तरह का दुराव पैदा हो गया है. लोगों को लगता है कि गणतंत्र दिवस मनाना बेकार बात है, झंडा फहराने और परेड करने से क्या फर्क पड़ता है. मगर पिछले दिनों एक दलित महिला विचारक ने कहा कि देश के सभी वंचितों को गणतंत्र दिवस जरूर मनाना चाहिये, क्योंकि इस देश के लोगों को आजादी...
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जनता कौन है आखिर?- प्रेम प्रकाश पांडेय
भारत के संविधान में लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना का स्पष्ट विधान है, जिसमें जन-प्रतिनिधियों, लोक-सेवकों और समूचे तंत्र को लोकहित में काम करने का स्पष्ट निर्देश भी है। 'सरकार' शब्द की कल्पना और अवधारणा ही इसी आधार पर टिकी हुई है। समाज ने जब पहली बार अपने लिए सरकार की जरूरत महसूस की होगी, तो उसके पीछे लोकहित, लोक सुरक्षा और लोकानुराग ही प्रमुख तत्व थे। इस बार 25 जनवरी को...
More »गेहूं बिक्री बढ़ाने पर जोर देगी सरकार - आर एस राणा
अगली समीक्षा बैठक में निर्यात और अगले सीजन की खरीद पर भी विचार होगा सरकार केंद्रीय पूल से गेहूं की बिक्री, निर्यात और रबी विपणन सीजन 2014-15 में गेहूं की सरकारी खरीद की समीक्षा के लिए बैठक आयोजित करेगी। 30 जनवरी को होने वाली बैठक की अध्यक्षता खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के वी थॉमस करेंगे। खाद्य मंत्रालय...
More »अर्थव्यवस्था के मर्ज की दवा- लार्ड मेघनाद देसाई
वर्ष 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था के समक्ष पहली चुनौती महंगाई है. इससे निबटना नयी सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेवारी होगी. पिछले तीन-चार वर्षो से महंगाई की दर बहुत अधिक रही है. महंगाई की समस्या बहुआयामी है. यह अन्य समस्याओं को भी जन्म दे रही है. इससे देश में बहुत बड़ा संकट आया है. अगर सरकार इन चुनौतियों से मुकाबला करने में सक्षम रही, तो भारत की अर्थव्यवस्था उम्मीदों से...
More »संविधान में गांव की परिभाषा भी नहीं- आर के नीरद
भारत के संविधान में गांव की कोई परिभाषा नहीं है. जब गांव ही नहीं है, तो ग्राम गणराज्य भी नहीं है. यह बड़ा विरोधाभास है. महात्मा गांधी गांव गणराज्य की बात करते थे. वे आजादी का असली अर्थ गांवों की समरसता, आत्मनिर्भरता और लोकतंत्र में जन भागीदारी को मानते थे. देश आजाद हुआ और गणतंत्र भारत के लिए अपना संविधान बना, लेकिन इसमें गांव की परिकल्पना शामिल नहीं हो सकी. सब ने...
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