जरा गौर कीजिए कि इसी देश में करीब अठारह-बीस करोड़ भूमिहीन दलित, अति पिछड़े मजूर हैं। उनके जीवन में यह मौका ही नहीं आता कि वे बैंक से कर्ज लें, खेती करें, उनकी फसल नष्ट हो और वे आत्महत्या कर लें। इसका अर्थ यह नहीं कि हम किसानों की आत्महत्या से पीड़ा का अनुभव नहीं करते। लेकिन इस बात को समझना तो होगा कि एक भूमिहीन किसान या मजूर आत्महत्या न...
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किसानों को सता रही सूखे की चिंता
नुआपाड़ा (निप्र)। ओडिशा के नुआपाड़ा जिले में कम बारिश होने के कारण किसानों को इस वर्ष अकाल की चिंता सता रही है। बारिश नहीं होने के कारण आधे से अधिक कृषि भूमि में फसल नष्ट होने के कगार पर है, जिसके कारण किसान वर्ग चिंतित नजर आ रहे हैं। नुआपाड़ा में जुलाई माह में 17 प्रतिशत कम बारिश होना रिकार्ड किया गया है। वहीं इस वर्ष जिला में 54 प्रतिशत...
More »मॉनसून के दौरान अल्प वृष्टि से निपटने को तैयार है सरकार
नयी दिल्ली : मॉनसून के इस वर्ष सामान्य से कम रहने के अनुमानों की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने गुरुवार को कहा कि वह कम बरसात की हालात से उत्पन्न होनेवाली स्थितियों से निपटने के लिए हर संभव कदम उठा रही है तथा राज्य सरकारों को भी इस मामले में चौकस रहने को कहा है. हालांकि, मॉनसून के अपने निर्धारित समय से दो दिन पहले केरल तट पर...
More »गांवों की ओर भी देखें हुक्मरान- देविन्दर शर्मा
किसी गांव की एक महिला बकरी खरीदना चाहती है। वह आर्थिक तौर पर अपने पैरों पर खड़े होना चाहती है। यह जानते हुए कि उसे मदद मिल सकती है, वह इस काम के लिए लघु वित्तीय संस्थान (एमएफआई) में संपर्क करती है। उसे लगभग 7,000 रुपए की जरूरत है। एक स्वयं सहायता समूह के जरिए काम कर रही एमएफआई उसे 24 प्रतिशत की दर पर ब्याज के हिसाब से यह...
More »किसानों को चाहिए सुरक्षा कवच- बी के चतुर्वेदी
विकट कृषि संकट के चलते किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में हमें इस समस्या पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। किसानों के लिए किसी भी तरह के सुरक्षा तंत्र की रूपरेखा उनकी जरूरतों और समस्याओं की समझ पर आधारित होनी चाहिए। ऐसे किसी तंत्र के लिए विभिन्न पहलुओं पर गौर करना जरूरी है। इसमें से पहला यह कि छोटी जोत की खेती के लिए बड़े पैमाने पर...
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