धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम...
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किसानों पर कौन लगाना चाहता है टैक्स, जेटली ने क्या दी सफाई
वाशिंगटन/नयी दिल्ली : केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के सदस्यों ने अपने पहले तीन साल की कार्ययोजना में किसानों पर टैक्स लगाने की सलाह दी है. टैक्स देनेवालों का दायरा बढ़ाने के लिए यह सलाह दी गयी है. हालांकि, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार की कृषि आय पर किसी तरह का कर लगाने की कोई योजना नहीं है. प्रख्यात अर्थशास्त्री तथा...
More »सुधार की बाट जोहती अदालतें - विराग गुप्ता
पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या विवाद का विधिसम्मत समाधान निकालने के बजाय संबंधित पक्षों पर आम सहमति से निदान तलाशने का जिम्मा सौंप दिया। इसके उलट भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई में अनियमितताओं के लिए दोषियों को दंडित तो नहीं किया, अलबत्ता क्रिकेट प्रशासन में सुधार का जिम्मा सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के हाथ में सौंप दिया। शायद यही कारण रहा कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व सांसदों की पेंशन...
More »रोजी-रोजगार का हाहाकार-- अनिल रघुराज
बिगाड़ना बड़ा आसान है, बनाना बहुत मुश्किल. इसी तरह रोजगार मिटाना बहुत आसान है, जबकि रोजगार बनाना बहुत मुश्किल. अगर ऐसा न होता, तो हर साल दो करोड़ नये रोजगार पैदा करने का वादा करनेवाली मोदी सरकार अपने आधे कार्यकाल तक कम-से-कम पांच करोड़ रोजगार तो पैदा ही कर चुकी होती. लेकिन, सरकार का श्रम ब्यूरो बताता है कि देश में रोजगार देनेवाले आठ प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में अप्रैल से...
More »बजट कोई घटना है या बढ़ना!-- अनिल रघुराज
कासिद के आते-आते खत इक और लिख दूं, मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जवाब में. सायास या अनायास, जो भी मानें, देश में बजट के सालाना अनुष्ठान का आज यही हाल हो गया है. दो दशक पहले तक लोगों को धड़कते दिल से इंतजार रहता था कि वित्त मंत्री क्या-क्या घोषणाएं करनेवाले हैं. इनकम टैक्स में क्या होने जा रहा है. कस्टम और एक्साइज ड्यूटी को लेकर जहां आयातकों...
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