यह उन लोगों की कहानियां हैं, जो आजादी, इंसाफ और शांति के साथ जीना चाहते हैं. अपने गांव में खेतों में उगती हुई फसल, अपने जानवरों, अपनी छोटी-सी दुकान और अपने छोटे-से परिवार के साथ एक खुशहाल जिंदगी चाहते हैं. लेकिन यह चाहना एक अपराध है. अमेरिका, दिल्ली और रांची में बैठे हुक्मरानों ने इसे संविधान, जनतंत्र और विकास के खिलाफ एक अपराध घोषित कर रखा है. उनकी फौजें गांवों...
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अब जनता से दूर नहीं होंगे पहाड़ों के जंगल : विनोद भावुक
मंडी. पहाड़ के जंगल अब यहां की जनता के हो गए हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार ने आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वनवासी वनाधिकार मान्यता कानून 2006 अन्य वनवासी समुदायों के लिए भी लागू कर दिया है। सरकार ने 27 मार्च को सरकारी आदेश जारी कर दिए हैं। प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में प्रदेश सरकार की ओर से 1 अप्रैल 2008 को ही इस कानून को लागू कर दिया गया था। अब अन्य...
More »क्यों बढ़ रहा है जल-संकट? -- बाबा मायाराम
पिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेष समेत देष भर में पानी का संकट बढ़ा है। यह समस्या प्रकृति से ज्यादा मानव-निर्मित है। वर्षा की कमी के साथ, वनों की अवैध कटाई, पुराने तालाबों पर अतिक्रमण, गाद भरने से सरोवरों की भंडारण क्षमता में कमी, पानी की फिजूलखर्ची, नदी, जलाषयों का पानी औद्योगिक इकाईयों को देने व षहरों के प्रदूषित पानी को नदियों के प्रदूषण और भूजल को बेतहाषा दोहन से समस्या...
More »अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे जंगल
नयी दिल्ली : दुनिया के करीब सात अरब लोगों को प्राणवायु ( ऑक्सीजन ) प्रदान करनेवाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यदि जल्द ही इन्हें बचाने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाये गये तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं विकराल रूप ले लेंगी. पटना में लंबे समय से जंगलों को बचाने के लिए काम कर रही संस्था तरूमित्र के प्रमुख फ़ादर राबर्ट ने बताया...
More »राहत शिविर या शामत शिविर!- राजकुमार सोनी(तहलका)
वे गांव लौटे तो नक्सलवादियों का निशाना बन जाएंगे और यदि राहत शिविरों में रहते हैं तो उन्हें अमानवीय परिस्थितियों के बीच ही बाकी जिंदगी गुजारनी पड़ेगी. सलवा जुडूम अभियान के दौरान बस्तर के राहत शिविरों में रहने आए हजारों ग्रामीण आदिवासी आज त्रिशंकु जैसी स्थिति में फंसे हैं. राजकुमार सोनी की रिपोर्ट कोतरापाल गांव की प्रमिला कभी 15 एकड़ खेत की मालकिन थी, लेकिन गत छह साल से वह अपने...
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