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सरकारी स्कूलों में नहीं हुआ गैस सिलेंडर का दाखिला, छत्तीसगढ़ फिसड्डी

संदीप तिवारी, रायपुर। सरकारी स्कूलों में बच्चों को सही पोषण आहार देने और उन्हें लकड़ी के धुएं व प्रदूषण से छुटकारा दिलाने में छत्तीसगढ़ फिसड्डी साबित हुआ है। गैस सिलेंडर में मध्यान्ह भोजन पकाने के मामले में छत्तीसगढ़ 32वें पायदान पर हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिसम्बर 2017 की स्थिति में जारी आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं।   राज्य के 44975 प्राइमरी-मिडिल स्कूलों में सिर्फ 1064 स्कूलों में ही...

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दलित दर्द की खतरनाक अनदेखी-- तरुण विजय

किसी भी समाज का सबसे बड़ा अपमान उसके दर्द, उसके इतिहास और उसके संघर्ष को नकारना होता है. कश्मीरी हिंदुओं के साथ यही हुआ. तमाम सेकुलर-जेहादियों ने पुस्तकें लिख डालीं कि कश्मीर घाटी से हिंदू अपने सदियों पुराने घर-बागीचे अपनी मर्जी से छोड़ आये, ताकि मुसलमान बदनाम किये जा सकें. आज महाराष्ट्र में दलितों के असंतोष को न तो हल्के ढंग से लेना चाहिए, न ही इसका सारा श्रेय...

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स्त्री छवि का उनका खांचा-- मनीषा सिंह

अमेरिका और ब्रिटेन जैसे खुले समाजों वाले देश 'कंटेंट वॉटरशेड टाइमिंग' जैसे तरीके का इस्तेमाल कर यह सुनिश्चित करते हैं कि टीवी पर ऐसी फिल्मों, धारावाहिकों और विज्ञापनों का प्रसारण उस वक्त न हो, जिस वक्त आम तौर पर बच्चे टीवी देख रहे होते हैं। इन विकसित देशों में भी ऐसी पाबंदी के पीछे यह धारणा काम कर रही है कि खुले समाज का अर्थ यह नहीं है कि वयस्क...

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क्यों बंद हो रहे सरकारी स्कूल--- कौशलेन्द्र प्रपन्न

एक सरकारी स्कूल का बंद होना क्या मायने रखता है इसका अनुमान शायद हम आज न लगा सकें। संभव है इसका खमियाजा समाज को दस-बीस बरस बाद भुगतना पड़े। एक ओर विकास के डंके बज रहे हैं वहीं दूसरी ओर आम बच्चों से उनकी बुनियादी शिक्षा की उम्मीद यानी सरकारी स्कूल तक छीने जा रहे हैं। हमने 2000 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तय किया था। उसमें 2010 तक सभी बच्चों...

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पढ़ाई का परिदृश्य-- कालू राम शर्मा

हम आज भी मैकाले को खलनायक के रूप में याद करते नहीं थकते हैं। अंगेजों के राज में एक खास प्रकार की शिक्षा-व्यवस्था रची गई थी, जो तब अंग्रेजी राज की जरूरतों के मुताबिक थी। आजादी पाने के पहले ही गांधीजी उस शिक्षा-व्यवस्था से न केवल व्यथित थे, बल्कि उनमें एक आक्रोश था और इसका उन्होेंने हल भी खोजा कि शिक्षा ऐसी हो जो देश की सामाजिक स्थिति और यहां...

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