जनसत्ता 22 मार्च, 2013: भाषा के प्रश्न को राजनीति के पुरोधाओं ने इस देश का रिसता नासूर बना दिया। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा संबंधी नियमावली में संशोधन ने उस नासूर में फिर नश्तर लगा दिया। गांधीजी जानते थे कि भाषा का सवाल इस मुल्क की दुखती रग हमेशा बना रहेगा। शायद इसीलिए उन्होंने 1909 में ‘हिंद स्वराज\' में अपने स्वभाव के बरखिलाफ सख्त चेतावनी दी थी कि...
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दूध की बिक्री के लिए नहीं ठोस नीति
संवाद सहयोगी, बलाचौर : दूध को सर्वश्रेष्ठ खाद्य पदार्थ के रूप में जाना जाता है। अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए यह पौष्टिक आहार महत्वपूर्ण माना जाता है, इसके बावजूद इसकी सही ढंग से बिक्री नहीं हो पा रही है। इसे लेकर पशु पालक काफी दुविधा में हैं। इस संबंध में दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए पशु पालक सुनील कुमार, रोशन लाल, मक्खन लाल, राकेश कुमार, रोशन लाल प्रेम चंद,...
More »28 नलकूपों से रोज 2 करोड़ लीटर भूगर्भ जल का दोहन
फतेहपुर, कार्यालय संवाददाता : विश्व स्तर पर जिस बात को लेकर मंथन हो रहा है। उसका शहर में कोई असर नहीं दिख रहा है। जल दोहन कर प्रतिदिन धरती की कोख से 2 करोड़ लीटर का जल दोहन हो रहा है, जिसमें 30 फीसद पानी बर्बाद हो रहा है। ऐसा नहीं है कि भूगर्भ जल के दोहन के लिए सभी अधिकृत हैं पर जलस्तर नीचे खिसकने के बाद भी प्रशासन इस...
More »अपनी भाषाओं का विस्थापन-मृणालिनी शर्मा
जनसत्ता 12 मार्च, 2013: आखिर संघ लोक सेवा आयोग पर अंग्रेजी का झंडा फहर ही गया। 2013 में संघ की भारतीय प्रशासनिक और अन्य केंद्रीय सेवाओं में भर्ती के लिए सिविल सेवा परीक्षा के रूप में होने वाली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा से भारतीय भाषाओं का परचा आखिर गायब हो गया। यों इसकी शुरुआत 2011 में ही प्रारंभिक परीक्षा (नया नाम: अभिक्षमता परीक्षण उर्फ एप्टिट्यूट टेस्ट) में कर दी...
More »महिला सशक्तीकरण के वास्ते- केपी सिंह
जनसत्ता 8 मार्च, 2013: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला सशक्तीकरण की बात करना फैशन नहीं, जरूरत है। इक्कीसवीं शताब्दी में भी महिलाएं संविधान-प्रदत्त मूलभूत अधिकारों को पाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। यह जद्दोजहद नई नहीं, सहस्राब्दियों पुरानी है। मानव-सभ्यता जब पृथ्वी पर पनपने लगी तो पुरुष ने अपनी शारीरिक सामर्थ्य का फायदा उठाते हुए पहला अधिकार स्त्री पर जताया था। महिलाओं के शोषण की कहानी वहीं से शुरू हो...
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