खास बातें- दुनिया में सबसे ज्यादा बड़े बांध बनाने वाले देशों में भारत तीसरे नंबर पर है। यहां अभी 3600 से ज्यादा बड़े बांधे हैं, जबकि 700 से ज्यादा अभी बनने की प्रक्रिया में हैं। भारत में बांधों की वजह से हुए विस्थापन के बारे में अलग अलग-अलग अनुमान हैं। दास और राव (1989) ने दावा किया कि भारत में बांध परियोजनाओं की वजह से दो करोड़ दस लाख लोग विस्थापित हुए। बड़े...
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क्या सोचा क्या पाया
जिन सपनों को लेकर एक दशक पहले उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था उनमें से कितने सपने आंखों से उतरकर जमीन पर चल पाए हैं? नौ नवंबर को उत्तराखंड राज्य दस साल का हो गया. दस साल की उम्र किसी राज्य का भविष्य तय करने के लिए काफी नहीं होती, पर ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’ वाली कहावत के हिसाब से देखा जाए तो उस भविष्य का अंदाजा लगाने के...
More »पॉस्को विवाद का निवेश पर असर नहीं
सोल। दक्षिण कोरिया की इस्पात क्षेत्र की विशाल कंपनी पॉस्को की भारत में 12 अरब डालर की परियोजनाओं के रास्ते में काफी अड़चनें आ रही हैं, पर इस विवाद का भविष्य में भारत में दक्षिण कोरिया के निवेश पर असर नहीं पड़ेगा। जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यहां आए हैं, पर उनकी यात्रा के दौरान यह विवादास्पद मसला उठने की उम्मीद नहीं है। सूत्रों...
More »किसान-सरकार साझेदारी का मॉडल
भू-अर्जन कानून 1894 में मामूली सा संशोधन कर ग्रामसभा की भूमि का उपयोग बदले जाने के बावजूद भारत के गांवों के किसानों एवं भूमिहीनों के वंशजों का भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है। इस संशोधन का नाम सक्रिय समूहों ने किसान-सरकार साझेदारी तय किया है। अगस्त में उत्तर प्रदेश के जिरकपुर हुए किसान आंदोलन के बाद विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने एक स्वर में भू-अर्जन कानून 1894 में संशोधन की मांग की थी। मामला...
More »आत्मसम्मान का मजबूत होता जज्बा-- योगेन्द्र यादव
-सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा देश की राजधानी में आयोजित सम्मेलन अपने आप में एक ऐतिहासिक घड़ी थी. -सदियों से मैला उठाने वाला समाज अब टोकरी नहीं आवाज उठाना चाहता है, हाथ में झाड़ू नहीं किताब लेना चाहता है. -सरकार के झूठे वादों पर उम्मीद बांधने की बजाय अब इस समाज ने खुद मैलाप्रथा को खत्म करने की ठान ली है. आज भी कई लाख लोग अपने सर पर मैला उठाने को अभिशप्त हैं....
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