दिसंबर बीतते हुए पिछले कई वर्षों का लेखा-जोखा आप से आप करने लगता है. ब्रेक्जिट, अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव, सीरिया का गृहयुद्ध, नोटबंदी, राष्ट्रगान, राष्ट्रभक्ति, इन सबका हिसाब लगाने के बाद भी एक दिसंबर बचा रहता है, जो कई वर्षों से नहीं बीता. न वह नया होता है न पुराना. वह बस टंग गया है दीवार पर. उसकी तारीखें बदलती हैं, लेकिन उसकी तासीर नहीं बदलती. यह हमेशा उतना ठंडा...
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पैसे वालों से इस तरह छीनी जाएगी LPG सब्सिडी
नई दिल्ली। आयकर विभाग ने पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ ऐसे सभी करदाताओं का ब्योरा साझा करने का फैसला किया है जिनकी वार्षिक आय 10 लाख रुपए से ज्यादा है। उच्च आय वर्ग की ओर से रसोई गैस सब्सिडी की चोरी रोकेने के मकसद से ऐसा किया जाएगा। आयकर विभाग इस तरह के लोगों के नाम सहित उनके पैन, जन्मतिथि, उपलब्ध पते, ई-मेल आईडी और मोबाइल नंबर की जानकारी भी मंत्रालय...
More »जलवायु: मौसम का पक्ष-विपक्ष-- अखिलेश आर्येंन्दु
धूप-छांव, गरमी-बरसात का आना-जाना प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी है। धरती पर जीवन के लिए ये मौसम उतने ही जरूरी हैं जितना की हमें जिंदा रहने के लिए जल और भोजन। यों तो हमारी जलवायु के हिसाब से बारह महीने में तीन मौसम-जाड़ा, गरमी और बरसात प्रमुख हैं। उनका अपना अलग रंग-ढंग है। हर मौसम की अपनी खामी और खूबी होती है। सभी मौसमों में हमें कुछ सुखद अहसास होते...
More »वर्दी सुलगाकर थाली में दाल-सब्जी करते हैं फ्राई
रायपुर, ब्यूरो। सेंट्रल जेल का खाना फिर से खराब बनने लगा है। भात के नाम पर लेई और पानी जैसी दाल परोसी जाती है। सब्जी भी स्वादहीन मिलती है। खाने को टेस्टी बनाने का जुगाड़ बंदियों के पास है। हाथ-पैर में लगाने के लिए सरसों तेल मिलता है, उससे दाल और सब्जी को फ्राई करते हैं। आग जलाने के लिए कील को फर्श पर रगड़ने पर निकलने वाली चिंगारी से वर्दी...
More »पानी की कहानी कहने वाले पर्यावरण के गुरु का जाना
अनुपम भाई सरलता, सहजता और विनम्रता की ऐसी मूर्ति थे जो प्रकृति, पानी, पर्यावरण और मानवता के बीच एक गहरा संबंध बनाते रहे। वे हमेशा ही बड़ी से बड़ी सच्चाई को बिना किसी से डरे, बिना किसी लालच और द्वेष के निष्पक्ष होकर बोल देते थे। मैंने अपने जीवन में उनके जैसे सहज, सरल किंतु बेबाक लोग कम ही देखे हैं। अनुपमजी ने अपनी जीवन-यात्रा पानी व पर्यावरण को समर्पित कर...
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