प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग की विदाई की घोषणा कर दी है। उनकी अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार उन सारी नीतियों से मुक्ति की तरफ बढ़ रही है, जिनसे इस देश का पिछले छह दशक का राजकाज चला। दूसरी तरफ, यह भी लगता है कि सरकार के दिमाग में योजना आयोग जैसी संस्था का कोई विकल्प भी नहीं है। शुरू में ही सरकार में इसके लिए हर...
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स्त्री सशक्तीकरण की शर्तें- विकास नारायण राय
जनसत्ता 16 जून, 2014 : बलात्कार और हत्या पर राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए बदायूं के कटरा सादतगंज गांव में पहुंचने वाले राजनीतिकों को उपेक्षा से नहीं लेना चाहिए। न इस जमात के दूर से ऊलजलूल अर्द्ध-सत्य बोलने वालों को। दरअसल, इन सतही कवायदों में स्त्री-सशक्तीकरण के पैरोकारों के लिए एक निहित संदेश है- स्त्री-विरुद्ध हिंसा के मसलों पर समग्र राजनीतिक एजेंडे की सख्त जरूरत है। मीडिया, एनजीओ और कानून...
More »अलनीनो, मॉनसून और अर्थव्यवस्था- अविनाश कुमार चंचल
दुनियाभर के पर्यावरण विशेषज्ञ 2014 को अलनीनो का साल मान रहे हैं. अगर सच में यह साल अलनीनो के प्रभावों वाला होगा, तो यह भारत सहित समूचे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए चिंताजनक स्थिति बन सकती है. भारतीय मौसम विभाग ने भी इस साल मॉनसून में कमी का अनुमान जताया है. अलनीनो, मॉनसून और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज. पर्यावरण के गंभीर खतरों के बीच...
More »अबकी बार केवल सरकार- शंकर अय्यर
पिछले तीन महीने में भारत ने बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। यह सरकार विहीन यथार्थ से विपक्ष विहीन यथार्थ की स्थिति में आ गई है। निष्क्रियता और अयोग्यता का एक चक्र पूरा हो चुका है। ऐसे में, जनादेश को इस तरह भी अभिव्यक्त किया जा सकता है-अबकि बार केवल सरकार, कोई विपक्ष नहीं! सांसद आपस में मजाक करते देखे जा रहे हैं कि एनडीए के सभी सदस्यों के बैठने...
More »राजनीतिक विमर्श और जन-स्वास्थ्य- नीकी नैनसी
जनसत्ता 9 मई, 2014 : सोलहवीं लोकसभा के चुनाव अपने आखिरी चरण में हैं, लेकिन अभी तक किसी पार्टी ने सामाजिक विकास को लेकर कोई ठोस बहस या तथ्य पर आधारित चर्चा करने की जरूरत नहीं समझी है। किसी भी पार्टी का घोषणापत्र उठा लें, एक बात पर सभी अपना दावा करते नजर आएंगे- आर्थिक और समेकित विकास। इन भारी-भरकम शब्दों के इस्तेमाल में आपको कोई कटौती नहीं मिलेगी, चाहे...
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