दिल्ली से सटे नोएडा से कुछ दिनों पहले खबर आयी कि घरेलू दाइयों, जिन्हें अंगरेजी में लोग ‘मेड' कहते हैं और ‘मैडम' लोगों में संघर्ष हो गया. यह अपने तरह की अलग घटना है. दाइयां घरों में काम करती रहती हैं. उनकी ओर न तो समाज का और न ही सरकारों का ध्यान जाता है. इन घरेलू सहायकों के बिना उच्च और मध्य वर्ग का जीवन कितना कठिन हो...
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जनसंख्या नियंत्रण को राह दिखाता असम-- जयप्रकाश पाडे
महात्मा गांधी ने जब कहा था, ‘धरती पर सबकी जरूरत भर का सामान है, मगर सबके लालच को पूरा करने भर का नहीं', तब उन्हें आभास भी नहीं रहा होगा कि आने वाले समय में उन्हीं का देश जनसंख्या बढ़ोतरी से संत्रस्त हो जाएगा। आज स्थिति यह है कि तमाम कल्याणकारी योजनाएं उस रूप में जरूरतमंदों और आम जन तक पहुंच ही नहीं पा रही हैं, जिस रूप में उन्हें...
More »3 साल में 7.28 करोड़ लोगों को रोजगार दिया-नरेन्द्र मोदी ने, बोले अमित शाह
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बुधवार 12 जुलाई को कहा कि अर्थ जगत के पंडित ‘नौकरीविहीन वृद्धि' की बात का जिक्र करते हुए मोदी सरकार की आलोचना कर सकते हैं लेकिन भारत केवल नौकरी के भरोसे बेरोजगारी का मुकाबला नहीं कर सकता है और इस संदर्भ में स्वरोजगार पर जोर जरूरी है। शाह ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में केंद्र की मुद्रा ऋण योजना के तहत 7.28 करोड़ लोगों...
More »भारत की लगातार बढ़ती जनसंख्या वरदान है या अभिशाप
मंगलवार को विश्व जनसंख्या दिवस है. अलग-अलग देशों के लिए जनसंख्या से संबंधित अपनी समस्याएं हैं. जहां कुछ देश इस बात से परेशान हैं कि वहां जनसंख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है तो वहीँ भारत अपनी निरंतर बढ़ती जनसंख्या को लेकर परेशान है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने कुछ दिनों पहले यह दावा किया था कि भारत की आबादी 2024 तक चीन से ज्यादा हो जाएगी। वहीं 2030...
More »डिजिटल मीडिया का सच-- अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी
भारतीय लोकतंत्र की व्यापक परिधि में आज भी वह परिपक्वता नहीं है, जो किसी स्वस्थ समाज और लोक कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक है। समाज में गरीबी, कम शिक्षा दर, सांप्रदायिक सोच, जातीय उन्माद, जेंडरगत कुंठा, व्यक्तिगत स्वार्थपरता और पूंजी के शातिराना खेल ने जिस परिवेश को बढ़ाया है, उसमें लोकतांत्रिक मूल्यों का लगातार क्षरण हो रहा है। जबकि देश में मीडिया के प्रति विश्वसनीयता की लंबी परंपरा रही है।...
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