धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम...
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अपने प्रयोजन में विफल है मृत्युदंड-- प्रो. फैजान मुस्तफा
दो सौ वर्षों से भी अधिक पहले फ्रांस की राष्ट्रीय असेंबली में सजा-ए-मौत के विरुद्ध दलीलें देते हुए फ्रांसीसी क्रांति की प्रमुख हस्तियों में एक रॉब्सपीयर ने कहा था: ‘न्याय और विवेक की आवाज सुनें! यह कहती है कि मानवीय विचार शक्ति कभी इतनी निश्चित नहीं हो सकती कि वह कुछ मानवीय प्राणियों द्वारा किसी अन्य मानवीय प्राणी के प्राण लेने का फैसला कर समाज को वैसा करने दे... आप...
More »'अब महिलाएं जोश में, आओ शराबी होश में'-- नीरज सहाय
"दिहाड़ी मज़दूर को मिलता क्या है. दस घंटे खटकर दो-ढाई सौ रुपए. और सांझ ढले जब लड़खड़ाते कदमों के साथ वो घर लौटे तो देखते ही एहसास हो जाता है कि ज़रूर पसीने की कमाई शराब में गई होगी. तब क्या गुजरता है दिल पर, बयां नहीं कर सकती. दो बच्चों का चेहरा देखकर खुद मज़दूरी करने लगी हूं. अब गांवों में शराब के ख़िलाफ़ जो मुहिम चली है उससे...
More »एक नागरिक की जवाबदेही-- रबिभूषण
एक कथन है- 'एक नागरिक की जवाबदेही यही होती है कि जो कुछ भी उसके आस-पास गलत हो रहा है, वह उस पर लोकतांत्रिक ढंग से अपना हस्तक्षेप दर्ज करे.' यह कथन प्रमुख सामाजिक, मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया का है, जो उन्होंने कुछ दिन पहले एक साक्षात्कार में कहा है. वर्ष 2005 से बस्तर अधिक अशांत है. इसी वर्ष छत्तीसगढ़ सरकार ने कई उद्योगपतियों-कॉरपोरेटरों के साथ एमओयू साइन किया था....
More »शिक्षा की मुहिम में नजरंदाज हो जाते हैं दिव्यांग बच्चे-- अलका आर्य
हाल ही में संसद द्वारा दिव्यांगों (विकलांगों) के अधिकारों से जुडे़ जिस विधेयक को पारित किया गया है, उसमें दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ खास प्रावधान हैं। अब दिव्यांग बच्चों को छह से 18 साल तक नि:शुल्क शिक्षा मुहैया कराई जाएगी, जबकि मौजूदा प्रावधान में यह आयु सीमा छह से 14 वर्ष है, जो शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सभी वर्ग के बच्चों पर लागू होती है। दिव्यांग बच्चों...
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