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...तो नामी प्राइवेट स्कूलों में पढेंगे गरीबों के बच्चे- शैलेन्द्र श्रीवास्तव

गरीबों के बच्चों का नामी-गिरामी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने का सपना अब साकार हो सकेगा। राज्य सरकार प्राइवेट स्कूल की 25 फीसदी सीटों पर ऐसे बच्चों को दाखिला देने के लिए पूर्व में तय मानकों में बदलाव की तैयारी कर रही है। अगले सत्र के लिए दाखिले से पहले संशोधित आदेश जारी कर दिया जाएगा। प्रारंभिक रूप से निजी स्कूलों में दाखिले के लिए सरकारी स्कूलों से प्रमाण पत्र लेने की...

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सीएम ने कहा, ऐसे बीज विकसित करें जो प्राकृतिक आपदा झेल सकें

वैभव श्रीधर, भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सातवें राष्ट्रीय बीज सम्मेलन में कहा कि हमें ऐसे बीज विकसित करना चाहिए जो प्राकृतिक आपदा झेल सकें। प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलें बरबाद हो जाती हैं और इससे किसान को काफी नुकसान होता है। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के संबोधन के बीच शार्टसर्किट से धमाका भी हुआ। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे बीज को विकसित करना चाहिए जो कम अवधि वाली फसलें...

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इको-फ्रेंडली सीमेंट से सस्ते में बनेंगे मकान, सीमेंट में लाइमस्टोन की जगह होगी मिट्टी

नई दिल्ली. कम निवेश में गांवों के कच्चे मकानों को पक्का करने के साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखने की दिशा में आईआईटी दिल्ली, मद्रास और मुंबई मिलकर इको-फ्रेंडली सीमेंट बना रहे हैं। जिसके निर्माण में कम कार्बन का उत्सर्जन होगा। दरअसल इस तकनीक को स्विस की एक संस्था ईपीएफएल ने इजाद किया है और क्यूबा में घरों के निर्माण इस इको-फ्रेंडली सीमेंट से हो रहे हैं। विश्व की सीमेंट...

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क्या गरीबी कभी खत्म हो सकती है?- लार्ड मेघनाद देसाई

लॉर्ड मेघनाद देसाई भारतीय मूल के ब्रिटिश अर्थशास्त्री और लेबर पार्टी से जुड़े राजनीतिज्ञ हैं. वह अर्थशास्त्र के विश्वविख्यात संस्थान, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रह चुके हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. उनके 200 से ज्यादा लेख अकादमिक जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं. वह कई भारतीय व ब्रिटिश अखबारों के लिए नियमित स्तंभ लिखते हैं. 5 सितंबर 2014 को उन्होंने पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) में...

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यहां रद्दी मिटा रही बेसहारा बच्चों की भूख

सुमेधा पुराणिक चौरसिया, इंदौर। घर के कोने में पड़ी रद्दी भी बच्चे की भूख मिटा सकती है, सुनकर ताज्जुब होगा, लेकिन यह सच है। शहर में अनूठी तरह की समाजसेवा चल रही है, जिसके लिए न तो चंदा मांगा जाता है और न प्रचार किया जाता है। जैन समाज के लोग घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठी करते हैं। सालभर में जमा इस रद्दी के बिकने से जमा हुए करीब डेढ़ लाख...

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