साल 2013. दिल्ली में इस साल की शुरुआत धरनों, प्रदर्शनों, भूख हड़ताल और नारों से हुई थी. 16 दिसंबर 2012 की शाम जो हादसा निर्भया के साथ हुआ उसने दिल्ली ही नहीं पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इसके बाद लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे. कहीं निर्भया को न्याय दिलाने की मांग थी तो कहीं महिलाओं की सुरक्षा के लिए नए कानून बनाने के आंदोलन हो...
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ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों को सिर्फ चेतावनी का 'डोज '
भोपाल मेमोरियल हास्पिटल एवं रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) में भर्ती मरीजों की जिंदगी से खेलने वाली दवा कंपनी व डॉक्टरों को क्लीन चिट मिल गई है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने बहुचर्चित ड्रग ट्रायल मामले में कंपनी व चिकित्सकों को महज चेतावनी देकर छोड़ दिया है। वहीं अस्पताल प्रबंधन को पूरी तरह से क्लीन चिट दे दी गई है। वर्ष 2004 से 2009 के बीच हुए 3 दवाओं के...
More »पेडन्यूज को अपराध बनाये जाने की जरूरत
नयी दिल्ली : मुख्य निर्वाचन आयुक्त वी एस संपत ने कहा है कि भारतीय चुनाव में पेड न्यूज की बढती समस्या से निपटने की राह में एक कानूनी खामी है और निर्वाचन कानून के तहत इसे अपराध बनाये जाने की जरूरत है. संपत को इस तथ्य से राहत है कि निर्वाचन आयोग ने 16वीं लोकसभा के चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराये जिसमें पहली बार नेताओं को नफरत फैलाने वाले भाषण देने से...
More »जातीय विद्वेष की जड़ें- विनोद कुमार
जनसत्ता 16 मई, 2014 : असम की जातीय हिंसा पर कोई सार्थक बातचीत या चर्चा शुरूकरने का खतरा यह है कि कहीं आप अल्पसंख्यक विरोधी करार न दे दिए जाएं। वह भी उस वक्त जब असम में जातीय हिंसा में लोगों के मरने का सिलसिला साल दर साल बढ़ता गया है। ताजा हिंसा इत्तिफाक से मोदी के उस दौरे के तुरंत बाद शुरूहुई, जिसमें उन्होंने घुसपैठियों को देश से निकाल...
More »राजनीतिक विमर्श और जन-स्वास्थ्य- नीकी नैनसी
जनसत्ता 9 मई, 2014 : सोलहवीं लोकसभा के चुनाव अपने आखिरी चरण में हैं, लेकिन अभी तक किसी पार्टी ने सामाजिक विकास को लेकर कोई ठोस बहस या तथ्य पर आधारित चर्चा करने की जरूरत नहीं समझी है। किसी भी पार्टी का घोषणापत्र उठा लें, एक बात पर सभी अपना दावा करते नजर आएंगे- आर्थिक और समेकित विकास। इन भारी-भरकम शब्दों के इस्तेमाल में आपको कोई कटौती नहीं मिलेगी, चाहे...
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